Deepbodhi

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ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है ©Deepbodhi

#leafbook  ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

©Deepbodhi

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15 Love

ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मुहब्बतें कैसी लहू में नाच रही हैं ये वहशतें कैसी न शब को चांद हैं अच्छा न दिन को मेहर अच्छा ये हम पे बीत रही हैं क़यामतें कैसी अज़ाब जीन का तबस्सुम सवाब जिनकी निगाह खिंची हुई हैं पस-ए-जानां सूरतें कैसी हवा के दोश पे रक्खे हुए चिराग़ हैं हम जो बुझ गये तो हवा से शिकायतें कैसी जो बेख़बर कोई गुज़रा तो ये सदा दी है मैं संग-ए-राह हू मुझ पर इनायतें कैसी ©Deepbodhi

#leafbook  ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मुहब्बतें कैसी
लहू में नाच रही हैं ये वहशतें कैसी

न शब को चांद हैं अच्छा न दिन को मेहर अच्छा
ये हम पे बीत रही हैं क़यामतें कैसी

अज़ाब जीन का तबस्सुम सवाब जिनकी निगाह
खिंची हुई हैं पस-ए-जानां सूरतें कैसी

हवा के दोश पे रक्खे हुए चिराग़ हैं हम
जो बुझ गये तो हवा से शिकायतें कैसी

जो बेख़बर कोई गुज़रा तो ये सदा दी है
मैं संग-ए-राह हू मुझ पर इनायतें कैसी

©Deepbodhi

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13 Love

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते ©Deepbodhi

#leafbook  हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते

जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते

तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते

लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

©Deepbodhi

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11 Love

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते ©Deepbodhi

#leafbook  हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते

जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते

तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते

लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

©Deepbodhi

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13 Love

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है ©Deepbodhi

#leafbook  वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है

महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

©Deepbodhi

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13 Love

आरज़ू थी एक दिन तुझसे मिलूं मिल गया तो सोचता हूँ क्या कहूँ घर में गहराती ख़ला है क्या कहूँ हर तरफ़ दीवार-ओ-दर है क्या करूँ जिस्म तू भी और मैं भी जिस्म हूँ किस तरह फिर तेरा पैरहन बनूँ रास्ता कोई कहीं मिलता नहीं जिस्म में जन्मों से अपने क़ैद हूँ थी घुटन पहले भी पर ऐसी न थी जी में आता है कि खिड़की खोल दूँ ख़ुदकुशी के सैकड़ों अंदाज़ हैं आरज़ू का ही न दमन थाम लूँ साअतें सनअतगरी करने लगीं हर तरफ़ है याद का गहरा फ़ुसूँ ©Deepbodhi

#leafbook  आरज़ू थी एक दिन तुझसे मिलूं
मिल गया तो सोचता हूँ क्या कहूँ

घर में गहराती ख़ला है क्या कहूँ
हर तरफ़ दीवार-ओ-दर है क्या करूँ

जिस्म तू भी और मैं भी जिस्म हूँ
किस तरह फिर तेरा पैरहन बनूँ

रास्ता कोई कहीं मिलता नहीं
जिस्म में जन्मों से अपने क़ैद हूँ

थी घुटन पहले भी पर ऐसी न थी
जी में आता है कि खिड़की खोल दूँ

ख़ुदकुशी के सैकड़ों अंदाज़ हैं
आरज़ू का ही न दमन थाम लूँ

साअतें सनअतगरी करने लगीं
हर तरफ़ है याद का गहरा फ़ुसूँ

©Deepbodhi

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12 Love

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