White किस्से नए पुराने हुआ करते थे सिर्फ तारों के चादर से ढकी वो काली रात के साए में
जब ना फोन था और ना ही था ये इंटरनेट, बस खुले आसमान के नीचे ठंडी ठंडी हवाओं के झौंको में बस किस्से कहानियां चल करती थी।
वो कच्चे आंगन के आगोश में चारों तरफ चारपाई बिछा करती थी
किस्से कहने वाला हमेशा बीच में हुआ करता था और बाकी के लोग बस चुपचाप सुना करते थे
अब किस्सों कहानियों की जगह फोन ने ले ली और हमारे कीमती समय को अब ये इंटरनेट ही खा गया
आने वाली पीढ़ी इन बातों को नहीं जानती और अगर आप समझाने भी लगे तो ये आपकी जनरेशन नहीं है कहकर है धुतकारती
कितना अंतर आ गया है ना, भले ही हम तरक्की कर आगे बढ़ जाए
लेकिन वो कीमती पल जो अपनों के साथ बिताए थे, वो कहां से लाए
अब वो ज़माना भी बस किस्सा हो गया है, क्योंकि अब का ज़माना मॉडर्न हो गया है।
©Prachi Thapan
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