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डगमगाया हूं पर हारा नहीं, सियासत का खेल है, सारा यही। जीत कर भी मुकाम जो पाया नहीं, एक कदम पीछे, पर दिल घबराया नहीं। कुर्सी की जंग में चली चाल नई, सत्ता के संग दोस्ती भी बेमायनी। नेता जी ने झुककर दिखा दी मिसाल, जनता की खातिर किया हर सवाल। राजनीति में ऊंच-नीच का है खेल, कभी जीत का ताज, कभी हार का मेल। पद पीछे सही, मगर हौसला वही, नेता जी का जज्बा, मिसाल बनी। ©Balwant Mehta

#कविता #maharashtra #Politics  डगमगाया हूं पर हारा नहीं,
सियासत का खेल है, सारा यही।
जीत कर भी मुकाम जो पाया नहीं,
एक कदम पीछे, पर दिल घबराया नहीं।

कुर्सी की जंग में चली चाल नई,
सत्ता के संग दोस्ती भी बेमायनी।
नेता जी ने झुककर दिखा दी मिसाल,
जनता की खातिर किया हर सवाल।

राजनीति में ऊंच-नीच का है खेल,
कभी जीत का ताज, कभी हार का मेल।
पद पीछे सही, मगर हौसला वही,
नेता जी का जज्बा, मिसाल बनी।

©Balwant Mehta

लोकतंत्र की धज्जियां, उड़ रही हर ओर ! चारों खंबे मिले जुले, लूट रहे चारों चोर !! कलम को चारों ओर, दिख रहा अंधकार ! लुट रही जनता सारी, जनहित तार तार !! जीना मुश्किल हो रहा, बजट बैठ ही न रहा ! रोज़गार लापता, पांच किलो बस मिल रहा !! कमाना तो चाहत सारे, पढ़े लिखे फ़िरत मारे मारे ! अपराधियों के आज-कल, चहुँ ओर है वारे न्यारे !! ईमान की कदर नहीं, भ्रष्टाचार का बोलबाला ! काम कोई भी हो तो, नोट और परोसो बाला !! मिट चुका है जड़ मूल से, नैतिकता का नाम निशां ! रोज़ परोस रहे हैं जुआ, हर गली में उपलब्ध नशा !! शादी की सोच घट रही, घट रही संतान की लालसा ! बुजुर्गों का सम्मान नहीं, घटा वृद्धाश्रम का फ़ासला !! बुद्धिजीवियों की बुद्धि भी, डरी सहमी दुबकी है ! जिनमें भी हिम्मत थी उनकी जान तक जा चुकी है !! जुल्मों सितम की पराकाष्ठा जब जब हुई ज़माने में ! उम्मीद की किरणें ओझल हुई जब कभी ज़माने से !! युवाओं ने नए हौंसले से मुकाबले का बीड़ा उठाया है ! युवाओं का जोश और होश ही माहौल बदल पाया है !! - आवेश हिंदुस्तानी 23.10.2024 ©Ashok Mangal

#कविता #IndiaLoveNojoto #JanMannKiBaat #AaveshVaani #Politics  लोकतंत्र की धज्जियां, उड़ रही हर ओर !
चारों खंबे मिले जुले, लूट रहे चारों चोर !!

कलम को चारों ओर, दिख रहा अंधकार !
लुट रही जनता सारी, जनहित तार तार !!

जीना मुश्किल हो रहा, बजट बैठ ही न रहा !
रोज़गार लापता, पांच किलो बस मिल रहा !!

कमाना तो चाहत सारे, पढ़े लिखे फ़िरत मारे मारे !
अपराधियों के आज-कल, चहुँ ओर है वारे न्यारे !!

ईमान की कदर नहीं, भ्रष्टाचार का बोलबाला !
काम कोई भी हो तो, नोट और परोसो बाला !!

मिट चुका है जड़ मूल से, नैतिकता का नाम निशां !
रोज़ परोस रहे हैं जुआ, हर गली में उपलब्ध नशा !!

शादी की सोच घट रही, घट रही संतान की लालसा !
बुजुर्गों का सम्मान नहीं, घटा वृद्धाश्रम का फ़ासला !!

बुद्धिजीवियों की बुद्धि भी, डरी सहमी दुबकी है !
जिनमें भी हिम्मत थी उनकी जान तक जा चुकी है !!

जुल्मों सितम की पराकाष्ठा जब जब हुई ज़माने में !
उम्मीद की किरणें ओझल हुई जब कभी ज़माने से !!



युवाओं ने नए हौंसले से मुकाबले का बीड़ा उठाया है !
युवाओं का जोश और होश ही माहौल बदल पाया है !!

- आवेश हिंदुस्तानी 23.10.2024

©Ashok Mangal

तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक ले AC की चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर सत्ता का लोभ उसे है उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये खुद पीते साथ मे कोफी जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी -जय हिन्द ©Ali Rashid Hasrat

#Politics #Quotes  तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे 
अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते 
और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते 
नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते 
धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते 
नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये 
यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये 
ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की 
तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक  ले AC की  
चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर 
सत्ता का लोभ उसे है 
उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है 
अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है
àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है 
कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो 
तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है 
सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते 
तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते 
किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में 
कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है 
तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये 
खुद पीते साथ मे कोफी
जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी
तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी 
खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी 
-जय हिन्द

©Ali Rashid Hasrat

#Politics

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डगमगाया हूं पर हारा नहीं, सियासत का खेल है, सारा यही। जीत कर भी मुकाम जो पाया नहीं, एक कदम पीछे, पर दिल घबराया नहीं। कुर्सी की जंग में चली चाल नई, सत्ता के संग दोस्ती भी बेमायनी। नेता जी ने झुककर दिखा दी मिसाल, जनता की खातिर किया हर सवाल। राजनीति में ऊंच-नीच का है खेल, कभी जीत का ताज, कभी हार का मेल। पद पीछे सही, मगर हौसला वही, नेता जी का जज्बा, मिसाल बनी। ©Balwant Mehta

#कविता #maharashtra #Politics  डगमगाया हूं पर हारा नहीं,
सियासत का खेल है, सारा यही।
जीत कर भी मुकाम जो पाया नहीं,
एक कदम पीछे, पर दिल घबराया नहीं।

कुर्सी की जंग में चली चाल नई,
सत्ता के संग दोस्ती भी बेमायनी।
नेता जी ने झुककर दिखा दी मिसाल,
जनता की खातिर किया हर सवाल।

राजनीति में ऊंच-नीच का है खेल,
कभी जीत का ताज, कभी हार का मेल।
पद पीछे सही, मगर हौसला वही,
नेता जी का जज्बा, मिसाल बनी।

©Balwant Mehta

लोकतंत्र की धज्जियां, उड़ रही हर ओर ! चारों खंबे मिले जुले, लूट रहे चारों चोर !! कलम को चारों ओर, दिख रहा अंधकार ! लुट रही जनता सारी, जनहित तार तार !! जीना मुश्किल हो रहा, बजट बैठ ही न रहा ! रोज़गार लापता, पांच किलो बस मिल रहा !! कमाना तो चाहत सारे, पढ़े लिखे फ़िरत मारे मारे ! अपराधियों के आज-कल, चहुँ ओर है वारे न्यारे !! ईमान की कदर नहीं, भ्रष्टाचार का बोलबाला ! काम कोई भी हो तो, नोट और परोसो बाला !! मिट चुका है जड़ मूल से, नैतिकता का नाम निशां ! रोज़ परोस रहे हैं जुआ, हर गली में उपलब्ध नशा !! शादी की सोच घट रही, घट रही संतान की लालसा ! बुजुर्गों का सम्मान नहीं, घटा वृद्धाश्रम का फ़ासला !! बुद्धिजीवियों की बुद्धि भी, डरी सहमी दुबकी है ! जिनमें भी हिम्मत थी उनकी जान तक जा चुकी है !! जुल्मों सितम की पराकाष्ठा जब जब हुई ज़माने में ! उम्मीद की किरणें ओझल हुई जब कभी ज़माने से !! युवाओं ने नए हौंसले से मुकाबले का बीड़ा उठाया है ! युवाओं का जोश और होश ही माहौल बदल पाया है !! - आवेश हिंदुस्तानी 23.10.2024 ©Ashok Mangal

#कविता #IndiaLoveNojoto #JanMannKiBaat #AaveshVaani #Politics  लोकतंत्र की धज्जियां, उड़ रही हर ओर !
चारों खंबे मिले जुले, लूट रहे चारों चोर !!

कलम को चारों ओर, दिख रहा अंधकार !
लुट रही जनता सारी, जनहित तार तार !!

जीना मुश्किल हो रहा, बजट बैठ ही न रहा !
रोज़गार लापता, पांच किलो बस मिल रहा !!

कमाना तो चाहत सारे, पढ़े लिखे फ़िरत मारे मारे !
अपराधियों के आज-कल, चहुँ ओर है वारे न्यारे !!

ईमान की कदर नहीं, भ्रष्टाचार का बोलबाला !
काम कोई भी हो तो, नोट और परोसो बाला !!

मिट चुका है जड़ मूल से, नैतिकता का नाम निशां !
रोज़ परोस रहे हैं जुआ, हर गली में उपलब्ध नशा !!

शादी की सोच घट रही, घट रही संतान की लालसा !
बुजुर्गों का सम्मान नहीं, घटा वृद्धाश्रम का फ़ासला !!

बुद्धिजीवियों की बुद्धि भी, डरी सहमी दुबकी है !
जिनमें भी हिम्मत थी उनकी जान तक जा चुकी है !!

जुल्मों सितम की पराकाष्ठा जब जब हुई ज़माने में !
उम्मीद की किरणें ओझल हुई जब कभी ज़माने से !!



युवाओं ने नए हौंसले से मुकाबले का बीड़ा उठाया है !
युवाओं का जोश और होश ही माहौल बदल पाया है !!

- आवेश हिंदुस्तानी 23.10.2024

©Ashok Mangal

तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक ले AC की चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर सत्ता का लोभ उसे है उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये खुद पीते साथ मे कोफी जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी -जय हिन्द ©Ali Rashid Hasrat

#Politics #Quotes  तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे 
अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते 
और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते 
नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते 
धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते 
नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये 
यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये 
ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की 
तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक  ले AC की  
चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर 
सत्ता का लोभ उसे है 
उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है 
अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है
àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है 
कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो 
तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है 
सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते 
तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते 
किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में 
कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है 
तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये 
खुद पीते साथ मे कोफी
जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी
तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी 
खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी 
-जय हिन्द

©Ali Rashid Hasrat

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