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आम्ही जोडत जाऊ रोज नवीन पक्ष नवीन आघाडी मित्रपरीवार, नातीगोती तुम्ही तोडत रहा मुर्खांनो.. पक्षनिष्ठा, नेतृत्व ही कळकळ तुम्हालाच भारी आम्ही देऊ ते झेंडे तुम्ही फडकवत रहा मुर्खांनो.. ✍️भुषण ठाकरे ©Bhushan Thakare

#Quotes #Chess  आम्ही जोडत जाऊ रोज
नवीन पक्ष नवीन आघाडी
मित्रपरीवार, नातीगोती तुम्ही
तोडत रहा मुर्खांनो..

पक्षनिष्ठा, नेतृत्व ही कळकळ
तुम्हालाच भारी
आम्ही देऊ ते झेंडे तुम्ही
फडकवत रहा मुर्खांनो..
✍️भुषण ठाकरे

©Bhushan Thakare

#Chess

17 Love

बहुत फ़र्क होता है ज़रूरी और ज़रूरत में... कभी-कभी हम सिर्फ ज़रूरत होते हैं ज़रूरी नहीं...😊 ©Tarique Usmani

#Quotes #Chess  बहुत फ़र्क होता है ज़रूरी और 
ज़रूरत में...
कभी-कभी हम सिर्फ ज़रूरत होते हैं 
ज़रूरी नहीं...😊

©Tarique Usmani

#Chess

15 Love

#Quotes #Chess #SAD  शतरंज मे वज़ीर और 
ज़िंदगी मे ज़मीर,
अगर मर जाए तो 
समझिए खेल ख़त्म..!!

©Jyoti Sharma

#Chess #Quotes #Thoughts #Poetry #SAD #Chess

135 View

بچپن میں جب کوئی اخبار فروش گزرتے ھوئے یہ پکارتا تھا " *وطن* 3 روپے ،" *انقلاب* 2 روپے " *جنگ" 4 روپے ،" *عوام"1 روپے تو میں یہی سمجھتا تھا کہ وہ"اخبار" کی قیمت بتا رہا ہے منقول ۔ ©Gujrat Diary

#Quotes #Chess  بچپن میں جب کوئی اخبار فروش گزرتے ھوئے یہ پکارتا تھا

 " *وطن*   3 روپے
،" *انقلاب*   2 روپے
" *جنگ"   4 روپے
،" *عوام"1 روپے

 تو میں یہی سمجھتا تھا کہ وہ"اخبار" کی قیمت بتا رہا ہے

منقول






















۔

©Gujrat Diary

#Chess

15 Love

#firoz_ki_kalam_se #विचार #Chess  जिंदगी का खेल कुछ शतरंज जैसे है 
चोकन्ना ना रहो तो 
जिंदगी का खेल समझो खत्म...

©फिरोज़

राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या आगे आगे देखिए होता है क्या क़ाफ़िले में सुब्ह के इक शोर है या'नी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं तुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या ये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं दाग़ छाती के अबस धोता है क्या ग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़ 'मीर' उस को राएगाँ खोता है क्या 🙏🏻 मीर तकी मीर🙏🏻 ©Ram Yadav

#विचार #Chess  राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या 
आगे आगे देखिए होता है क्या 

क़ाफ़िले में सुब्ह के इक शोर है 
या'नी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या 

सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं 
तुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या 

ये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं 
दाग़ छाती के अबस धोता है क्या 

ग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़ 
'मीर' उस को राएगाँ खोता है क्या


🙏🏻 मीर तकी मीर🙏🏻

©Ram Yadav

#Chess

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आम्ही जोडत जाऊ रोज नवीन पक्ष नवीन आघाडी मित्रपरीवार, नातीगोती तुम्ही तोडत रहा मुर्खांनो.. पक्षनिष्ठा, नेतृत्व ही कळकळ तुम्हालाच भारी आम्ही देऊ ते झेंडे तुम्ही फडकवत रहा मुर्खांनो.. ✍️भुषण ठाकरे ©Bhushan Thakare

#Quotes #Chess  आम्ही जोडत जाऊ रोज
नवीन पक्ष नवीन आघाडी
मित्रपरीवार, नातीगोती तुम्ही
तोडत रहा मुर्खांनो..

पक्षनिष्ठा, नेतृत्व ही कळकळ
तुम्हालाच भारी
आम्ही देऊ ते झेंडे तुम्ही
फडकवत रहा मुर्खांनो..
✍️भुषण ठाकरे

©Bhushan Thakare

#Chess

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बहुत फ़र्क होता है ज़रूरी और ज़रूरत में... कभी-कभी हम सिर्फ ज़रूरत होते हैं ज़रूरी नहीं...😊 ©Tarique Usmani

#Quotes #Chess  बहुत फ़र्क होता है ज़रूरी और 
ज़रूरत में...
कभी-कभी हम सिर्फ ज़रूरत होते हैं 
ज़रूरी नहीं...😊

©Tarique Usmani

#Chess

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#Quotes #Chess #SAD  शतरंज मे वज़ीर और 
ज़िंदगी मे ज़मीर,
अगर मर जाए तो 
समझिए खेल ख़त्म..!!

©Jyoti Sharma

#Chess #Quotes #Thoughts #Poetry #SAD #Chess

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بچپن میں جب کوئی اخبار فروش گزرتے ھوئے یہ پکارتا تھا " *وطن* 3 روپے ،" *انقلاب* 2 روپے " *جنگ" 4 روپے ،" *عوام"1 روپے تو میں یہی سمجھتا تھا کہ وہ"اخبار" کی قیمت بتا رہا ہے منقول ۔ ©Gujrat Diary

#Quotes #Chess  بچپن میں جب کوئی اخبار فروش گزرتے ھوئے یہ پکارتا تھا

 " *وطن*   3 روپے
،" *انقلاب*   2 روپے
" *جنگ"   4 روپے
،" *عوام"1 روپے

 تو میں یہی سمجھتا تھا کہ وہ"اخبار" کی قیمت بتا رہا ہے

منقول






















۔

©Gujrat Diary

#Chess

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#firoz_ki_kalam_se #विचार #Chess  जिंदगी का खेल कुछ शतरंज जैसे है 
चोकन्ना ना रहो तो 
जिंदगी का खेल समझो खत्म...

©फिरोज़

राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या आगे आगे देखिए होता है क्या क़ाफ़िले में सुब्ह के इक शोर है या'नी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं तुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या ये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं दाग़ छाती के अबस धोता है क्या ग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़ 'मीर' उस को राएगाँ खोता है क्या 🙏🏻 मीर तकी मीर🙏🏻 ©Ram Yadav

#विचार #Chess  राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या 
आगे आगे देखिए होता है क्या 

क़ाफ़िले में सुब्ह के इक शोर है 
या'नी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या 

सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं 
तुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या 

ये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं 
दाग़ छाती के अबस धोता है क्या 

ग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़ 
'मीर' उस को राएगाँ खोता है क्या


🙏🏻 मीर तकी मीर🙏🏻

©Ram Yadav

#Chess

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