White लिपटे हैं मुझसे यादों के कुछ तार..और मैं
ठंडी हवाएं सुब्ह की,अख़बार.. और मैं
जागते रहे हैं साथ ही अक्सर ही तमाम शब
मेरी ग़ज़ल के कुछ नए अशआर..और मैं
क्या जाने अब कहाँ मिलें,कितने दिनों के बाद
लग जाऊँ क्या तेरे गले इक बार..और मैं
अपनी लिखी कहानी को ही जी रहा हूँ अब
इक जैसा ही तो है ..मेरा क़िरदार और मैं
पहले तो खूब तलुओं को छाले अता हुए
अब हमसफ़र है रास्ता पुरखार.. और मैं
ग़म था न कोई इश्को मुहब्बत की फ़िक्र थी
जीते थे ज़िंदगी को मेरे यार..और मैं
अक्सर ही करते रहते हैं ख़ामोश गुफ़्तगू
लग कर गले से आज भी..दीवार और मैं
अशआर =शे'र का बहुवचन पुरखार=काँटो भरा
©Kumar Dinesh
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