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मेरे द्वारा रचित कविताएँ एवं शायरीयाँ।।
नैनञ्छिन्दन्ति शास्त्राणि नैनन्दहति पावक:। न चैनङ्क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:।। अत्यन्त व्यथा के साथ संसूचित करै छी जे 8/12/24 के हमर सब के समाराधनीय सम्पूजनीय देवतुल्य रामचन्द्र काका(गुरुजी) दिवङ्गत भऽ गेला(सायुज्य प्राप्त केला) तदुपलक्ष्य दिनाङ् 17/12/24 केर एकादशा और दिनांक 18/12/24 केर द्वादशा कार्यक्रम ऐछ ताहि में अपने सब गोटे के उपस्थिति हृदयतल से प्रार्थनीय ऐछ । निवेदक:- समस्त चौधरी परिवार 🙏 ©Abhishek Choudhary Sanskrit
Abhishek Choudhary Sanskrit
12 Love
सेवन्ते सुरभारतीं सुकवयो निःस्वार्थभावेन ये, लोकानाञ्च हरन्ति काव्यकलया हृन्मानसं सर्वदा नानाशास्त्रविभूषका:प्रियवरा: विज्ञा:मदीयाग्रजा:, पूज्या:दीपकवात्स्यनामसुधयो वन्द्यास्समाराधका:।। रचयिता- अभिषेकचौधरी ✍️✍️ ©Abhishek Choudhary Sanskrit
13 Love
सेवन्ते सुरभारतीं सुकवयो निःस्वार्थभावेन ये, लोकानाञ्च हरन्ति काव्यकलया हृन्मानसं सर्वदा नानाशास्त्रविभूषका:प्रियवरा: विज्ञा:मदीयाग्रजा:, पूज्या:दीपकवात्स्यनामसुधयो वन्द्यास्समाराधका: अभिषेकचौधरी ✍️✍️ ©Abhishek Choudhary Sanskrit
14 Love
*वर्षा बहार* वर्षा बहार सबके, मन को लुभा रही है। नभ में छटा अनूठी,घनघोर छा रही है।। बिजली चमक रही है,बादल गरज रहे हैं। पानी बरस रहा है, झरने भी बह रहे हैं। करते हैं नृत्य वन में,देखो ये मोर सारे, मेंढ़क लुभा रहे हैं,गाकर सुगीत प्यारे।। तालों में जीव जलचर,अति हैं प्रसन्न होते। फिरते लखो पपीहें, हैं ग्रीष्म ताप खाते।। ©Abhishek Choudhary Sanskrit
15 Love
श्री लालबहादुर राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित निम्न प्रतियोगिताओं में मैंने विजय पाया:- 1)जनजातीय गौरव दिवस के उपलक्ष्य में:- भाषण प्रतियोगिता -प्रथम स्थान (1st) निबंध प्रतियोगिता -द्वितीय स्थान(2nd) 2) संविधान दिवस के उपलक्ष्य में:- भाषण प्रतियोगिता -प्रथम स्थान (1st) निबंध प्रतियोगिता -द्वितीय स्थान (2nd) 3)आज भारतीय भाष दिवस के उपलक्ष्य में: भाषण प्रतियोगिता -प्रथम स्थान(1st) निबंध प्रतियोगिता -प्रथम स्थान (1st) लोकगीत गायन प्रतियोगिता -द्वितीय स्थान(2nd) ©Abhishek Choudhary Sanskrit
16 Love
(मन्दाकिनीवर्णनम्) नानाविधैस्तीररुहैर्वृतां पुष्पफलद्रुमै:। राजन्तीं राजराजस्य नलिनीमिव सर्वत:।। मृगयूथनिपीतानि कलुषाम्भांसि साम्प्रतम्। तीर्थानि रमणीयानि रतिं संजनयन्ति मे।। जटाजिनधरा: काले वल्कलोत्तरवासस:। ऋषयस्त्ववगाहन्ते नदीं मन्दाकिनीं प्रिये।। मारुतोद्धूतशिखरै: प्रनृत्त इव पर्वत:। पादपै: पुष्पपत्राणि सृजद्भिरभितो नदीम्।। ©Abhishek Choudhary Sanskrit
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