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मत देना एक ग़ज़ल

369 View

#मोटिवेशनल

सच या झूठ ,

90 View

#कविता  White एक लम्बे अर्से से मैं 
समुन्दर के तट  पर 
टहलता  रहता था

पर अचानक  एक दिन.
समुन्दर ने एक बड़ी लहर.
को उठा दिया और 
उस लहरने मुझे तट से उठा कर समुन्द्र के हवाले कर दिया था 

मैं शुक्रगुज़ार हू उस लहर का
जिसने मुझ जैसे एक तुच्छ 
कतरे को समुन्द्र मे गिरा कर. मुझे समुन्द्र बना दिया था

©Parasram Arora

कतरा या समुन्द्र

90 View

 ग़ज़ल 
नशा  आदमी   को  ग़लाता  रहा  है 
ये कितनों की मैयत  सजाता रहा है 

समय से जो पहले  दिखे  बेटा बूढ़ा 
वो  चिंता  पिता  की  बढ़ाता रहा है 

जो बनना था बेटा बुढ़ापे की  लाठी 
वही  रोज़  पी  लड़खड़ाता  रहा  है

भरी  मांग  जिसने  लिए  सात  फेरे 
वही हमसफर दिल  दुखाता  रहा है

पसीना बहा कर  कमाता  जो  पैसा 
उसे  वो  जुए   में   लुटाता   रहा  है

किए तूने जितने  गुनाह  चोरी चुपके 
खुदा की नज़र  में  तो  आता रहा  है

©Sangeeta Verma

#नशा #ग़ज़ल #शायरी #दर्दभरीशायरी #motivational #एकसबक

108 View

White शीर्षक - कुछ लिखूं क्या..? मेरा भी शब्द है... कुछ लिखूं क्या घरों के गुनाह है कुछ सुनाई क्या..? रक्तों के संबंध तो नहीं है पर सहोदर है.. आंसू से लतपथ शरीर मौत के घरों में हैं कहती कि अनाथ क्यों रखना.... अपने बच्चों को भी साथ ले मरना....... पर विधाता को ये मंजूर कहां था औरों के घर में खेल ही अलग था... मारे या मारे गये, ये अतिश्योक्ती कहां था मूक-बधिर की तरह, बांधे पशुओं की तरह सहोदर को मार दिया गया रे... समाज... बताओं तुम कहां थे रे.... समाज ....??? ये आंसू कम पर नवजात के आंसू का क्या मां मां खोज रहे अबोध बालक का क्या..? चीख चीखकर कर बोलों, बताओं न रे समाज... हम तो दधिचि बन गये तुम कब बनोगे रे समाज..? मेरे भी शब्द है कुछ लिखूं क्या..... घरों के गुनाह है कुछ सुनाई क्या रे समाज....? ©Dev Rishi

#कविता #love_shayari  White 
शीर्षक - कुछ लिखूं क्या..?


मेरा भी शब्द है... कुछ लिखूं क्या
घरों के गुनाह है कुछ सुनाई क्या..?
रक्तों के संबंध तो नहीं है पर सहोदर है..
आंसू से लतपथ शरीर मौत के घरों में हैं 

कहती कि अनाथ क्यों रखना.... 
अपने बच्चों को भी साथ ले मरना.......
पर विधाता को ये मंजूर कहां था 
औरों के घर में खेल ही अलग था...

मारे या मारे गये, ये अतिश्योक्ती कहां था 
मूक-बधिर की तरह, बांधे पशुओं की तरह 
सहोदर को मार दिया गया रे... समाज...
बताओं तुम कहां थे रे.... समाज ....???

ये आंसू कम पर नवजात के आंसू का क्या 
मां मां खोज रहे अबोध बालक का क्या..?
चीख चीखकर कर बोलों, बताओं न रे समाज...
हम तो दधिचि बन गये तुम कब बनोगे रे समाज..?

मेरे भी शब्द है कुछ लिखूं क्या.....
घरों के  गुनाह है  कुछ सुनाई क्या रे समाज....?

©Dev Rishi

#love_shayari कुछ लिखूं क्या..?

12 Love

#weather_today  White पावसात या....
पावसात या साथ तुझी
जीवनात या ज्योत जशी
चिंब भिजलेल हे मन
आठवणीत तुझ्या दंग
पावसात या....

©शिवाजी

#weather_today पावसात या

162 View

मत देना एक ग़ज़ल

369 View

#मोटिवेशनल

सच या झूठ ,

90 View

#कविता  White एक लम्बे अर्से से मैं 
समुन्दर के तट  पर 
टहलता  रहता था

पर अचानक  एक दिन.
समुन्दर ने एक बड़ी लहर.
को उठा दिया और 
उस लहरने मुझे तट से उठा कर समुन्द्र के हवाले कर दिया था 

मैं शुक्रगुज़ार हू उस लहर का
जिसने मुझ जैसे एक तुच्छ 
कतरे को समुन्द्र मे गिरा कर. मुझे समुन्द्र बना दिया था

©Parasram Arora

कतरा या समुन्द्र

90 View

 ग़ज़ल 
नशा  आदमी   को  ग़लाता  रहा  है 
ये कितनों की मैयत  सजाता रहा है 

समय से जो पहले  दिखे  बेटा बूढ़ा 
वो  चिंता  पिता  की  बढ़ाता रहा है 

जो बनना था बेटा बुढ़ापे की  लाठी 
वही  रोज़  पी  लड़खड़ाता  रहा  है

भरी  मांग  जिसने  लिए  सात  फेरे 
वही हमसफर दिल  दुखाता  रहा है

पसीना बहा कर  कमाता  जो  पैसा 
उसे  वो  जुए   में   लुटाता   रहा  है

किए तूने जितने  गुनाह  चोरी चुपके 
खुदा की नज़र  में  तो  आता रहा  है

©Sangeeta Verma

#नशा #ग़ज़ल #शायरी #दर्दभरीशायरी #motivational #एकसबक

108 View

White शीर्षक - कुछ लिखूं क्या..? मेरा भी शब्द है... कुछ लिखूं क्या घरों के गुनाह है कुछ सुनाई क्या..? रक्तों के संबंध तो नहीं है पर सहोदर है.. आंसू से लतपथ शरीर मौत के घरों में हैं कहती कि अनाथ क्यों रखना.... अपने बच्चों को भी साथ ले मरना....... पर विधाता को ये मंजूर कहां था औरों के घर में खेल ही अलग था... मारे या मारे गये, ये अतिश्योक्ती कहां था मूक-बधिर की तरह, बांधे पशुओं की तरह सहोदर को मार दिया गया रे... समाज... बताओं तुम कहां थे रे.... समाज ....??? ये आंसू कम पर नवजात के आंसू का क्या मां मां खोज रहे अबोध बालक का क्या..? चीख चीखकर कर बोलों, बताओं न रे समाज... हम तो दधिचि बन गये तुम कब बनोगे रे समाज..? मेरे भी शब्द है कुछ लिखूं क्या..... घरों के गुनाह है कुछ सुनाई क्या रे समाज....? ©Dev Rishi

#कविता #love_shayari  White 
शीर्षक - कुछ लिखूं क्या..?


मेरा भी शब्द है... कुछ लिखूं क्या
घरों के गुनाह है कुछ सुनाई क्या..?
रक्तों के संबंध तो नहीं है पर सहोदर है..
आंसू से लतपथ शरीर मौत के घरों में हैं 

कहती कि अनाथ क्यों रखना.... 
अपने बच्चों को भी साथ ले मरना.......
पर विधाता को ये मंजूर कहां था 
औरों के घर में खेल ही अलग था...

मारे या मारे गये, ये अतिश्योक्ती कहां था 
मूक-बधिर की तरह, बांधे पशुओं की तरह 
सहोदर को मार दिया गया रे... समाज...
बताओं तुम कहां थे रे.... समाज ....???

ये आंसू कम पर नवजात के आंसू का क्या 
मां मां खोज रहे अबोध बालक का क्या..?
चीख चीखकर कर बोलों, बताओं न रे समाज...
हम तो दधिचि बन गये तुम कब बनोगे रे समाज..?

मेरे भी शब्द है कुछ लिखूं क्या.....
घरों के  गुनाह है  कुछ सुनाई क्या रे समाज....?

©Dev Rishi

#love_shayari कुछ लिखूं क्या..?

12 Love

#weather_today  White पावसात या....
पावसात या साथ तुझी
जीवनात या ज्योत जशी
चिंब भिजलेल हे मन
आठवणीत तुझ्या दंग
पावसात या....

©शिवाजी

#weather_today पावसात या

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