पिता
ज़िम्मेदारियों की कसौटी पर वो बैठा
ख्वाहिशें अपनी अंदर ही रौंदाता,
सर पर मेरेउसके आशीष का पहरा
दुःख क्लेश पर उनके प्रेम का परदा,
परेशानियाँ खुद की खुद तक छिपाये
संकट संतान के वो खुद पर ले आये,
जैसे पास कोई उनके रामबाण हो
समस्या उनके लिए कोई आम बात हो,
जो भी मुसीबत आये चाहे जब भी
दिखाये जैसे कुछ हुआ ही नहीं,
पता नहीं कैसे करते ये सब अब भी
हर पल बिताता होगा बस चिंता में ही,
नींद -चैन जो अपने दिन- रात गँवाए
तो दर्द कोई हमको कैसे छु पाए..?
पिता की उन पावन चरणों की
हम तो भाग्यशाली धूल माटी..,
प्रणाम है ऐसे संकट मोचन को..!
जो मोती बनाया हम धूल कणों को ।
©Deepali Singh
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