जब भी सीने की धड़कन बढ़ती है,
वो पिता अपने परिवार की सोच रहा होता है।
आंखो के आंसू की कीमत कितनी है,,
बेटा अंगुलियां गिन के बालों को नोच रहा होता है।
पिता के अंदर कितनी जरूरतों का बोझ है,
उसी बोझ तले पिता दब जाता है।
वक्त की धुरी को पिता रोक नहीं पाता,,
और उस धुरी के नीचे ही पिता आ जाता है।।
एक पिता ही है जनाब जो मां की ममता को,
अपने परिवार के ऊपर न्यौछावर कर देता है।
और लाड प्यार का सारा हिस्सा जो उन्हें मिला,,
अपने परिवार पर चंद लम्हों में लुटा देता है।
पिता का हाथ जब तक माथे पर रहता है,
संतान को कभी दुख महसूस नहीं हो पाता है।
वक्त की धुरी को पिता रोक नहीं पाता,,
और उस धुरी के नीचे ही पिता आ जाता है।।
©Satish Kumar Meena
पिता