तुम आस पास रहो ना रहो,तुम्हारा ख़्याल,तुम्हारी फ़िक्र
तुम्हारे हक़ में दुआएं
और
तुम्हारे लिए मेरा ये इकतरफा जज़्बा,हर सूरत,मुझ में ज़िंदा रहेगा
मैं,बदल जाना नहीं जानती,किसी को चाह कर उसे
नजरंदाज कर देने का फन नहीं है,मुझ में
तुम्हारे लिए,मेरा कोई मोल नहीं होगा
ना सही
जहां बदले की ख्वाइश हो,उस इश्क़ को जवाल हो
मैने कभी नहीं कहा,हिम्मत ही नहीं हुई
कोशिशें की थी पर,तुम तक शायद मेरे लफ़्ज़ भी
बेअसर ही थे
फिर बार बार यू, जज़्बातों की रुसवाई,नहीं मुझ से नहीं होता
ख़ामोश हो कर भी किसी को ताउम्र,चाहते रहना,अलग फन हैं
बड़ी हिम्मत चाहिए इस के लिए,तुम शाद रहो,चमकते रहो
मेरे हिस्से की खुशियां भी,तुम्हारा दामन भर दे
मुझे रब से और कुछ नहीं चाहिए
तुम से कोई तवज्जों मुझे न तो कभी मिली,ना मै इस क़ाबिल ही,होंगी शायद
अब कुछ ऐब तो हैं मुझ में,मैं फिर भी खुश हु
अपने हिस्से के जज्बे,फ़िक्र और ख़्वाब
मैने खामोशी से खर्च दिए,तुम पे
ना तो कोई था तुम से पहले ना आएगा कोई
तुम्हारे बाद
मेरी ज़मीनी हक़ीक़त रोक लेती है मुझे,कुछ मेरे तजुर्बे भी,चुप रहना
मुनासिब बताते हैं मुझे,फ़िर मुझे भी ख्वाइश थी
कोई मुझ से भी पूछे,चाहे मुझे, खराशें संवारे मेरी
सहारा बने मेरा,जिसका आसरा हो मुझे
बेहद मासूम, हसरतें थी लेकिन,शायद मुमकिन ही नहीं
मैं तुम्हारी खुशबू,तुम्हारा एहसास लिए
आबाद ही हु
मैं थोड़ी पागल हु,जानती हु,क्या करूं..??,इंसान ही तो हु
फरिश्ता तो नहीं बन सकती,तुम्हे खामोशी से चाहने का हक है मुझे
तुम,एक और बार अगर रुसवा कर दो,तो शायद जी भी ना पाऊं
बस इसलिए
अपना भरम खामोशी से क़ायम रखना,सही लगा मुझे
मैं खुद की इज्ज़त करती हु,मैं नाकाबिल सही
क़ाबिल ए रुसवाई
तो कतई नहीं
तुम्हारे लिए मेरी इकतरफा मोहब्बत,न बदली,न बदलेगी कभी
बस अब खामोश हो गई है,मेरे लिए ही सही,खुद का ख़्याल रखना
कोई हैं,जो हर सूरत तुम्हे खुश देखना चाहता है
ये बात याद रखना,कोई हक मिल सके तुम पर मुझे
शायद इस क़ाबिल नहीं,मै
लेकिन
तुम्हे खुश देखने की ख्वाइश और मेरा इश्क़,मुझ से कोई नहीं छीन सकता
नहीं छीन सकता कोई मेरी नज़रे मुझ से,जो इक नज़र तुम्हे देख कर
संवर जाती हैं
काश तुम कभी समझ पाते,ये सिर्फ तुम को चाहती है...
©ashita pandey बेबाक़
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