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White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ और मेरे कविता के बहते नासूर से फिर एक जिस्म तैयार होता है हर बार हृदय काग़ज के आर पार बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म की तूरपाई मे कागज के सिलवटों को नोच देता है दर्द नासूर का नही, जिस्म का नही काग़ज का होता मौत तीनों को कैद करता है रूह अकेला चित्कारता है कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है ©चाँदनी

#रोग  White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है
शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही
कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है

मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ
और मेरे कविता के बहते नासूर से 
फिर एक जिस्म तैयार होता है 

हर बार हृदय काग़ज के आर पार
बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म
की तूरपाई मे कागज के सिलवटों
को नोच देता है

दर्द नासूर का नही, जिस्म का
 नही काग़ज का होता

मौत तीनों को कैद करता है
रूह अकेला चित्कारता है

कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती
बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार
जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है

©चाँदनी

#रोग

16 Love

White अबोल मी सुकलेलं फुल हवेली वरून हळूच पडलेलं तूच मला तुझं बनवून समग्र जगात एकट सोडलेलं ©swanandi

#मराठीशायरी #sunset_time  White अबोल मी सुकलेलं फुल 
हवेली वरून हळूच पडलेलं 
तूच मला तुझं बनवून 
समग्र जगात एकट सोडलेलं

©swanandi

#sunset_time मराठी शायरी प्रेम रुबाब शायरी मराठी मराठी शायरी वालपेपर मराठी शायरी स्टेटस

13 Love

White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ और मेरे कविता के बहते नासूर से फिर एक जिस्म तैयार होता है हर बार हृदय काग़ज के आर पार बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म की तूरपाई मे कागज के सिलवटों को नोच देता है दर्द नासूर का नही, जिस्म का नही काग़ज का होता मौत तीनों को कैद करता है रूह अकेला चित्कारता है कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है ©चाँदनी

#रोग  White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है
शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही
कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है

मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ
और मेरे कविता के बहते नासूर से 
फिर एक जिस्म तैयार होता है 

हर बार हृदय काग़ज के आर पार
बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म
की तूरपाई मे कागज के सिलवटों
को नोच देता है

दर्द नासूर का नही, जिस्म का
 नही काग़ज का होता

मौत तीनों को कैद करता है
रूह अकेला चित्कारता है

कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती
बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार
जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है

©चाँदनी

#रोग

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White अबोल मी सुकलेलं फुल हवेली वरून हळूच पडलेलं तूच मला तुझं बनवून समग्र जगात एकट सोडलेलं ©swanandi

#मराठीशायरी #sunset_time  White अबोल मी सुकलेलं फुल 
हवेली वरून हळूच पडलेलं 
तूच मला तुझं बनवून 
समग्र जगात एकट सोडलेलं

©swanandi

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