White मैं चला जिस किसी गली में नफरत ही बस मिली है,
ढूंढूं इश्क़ की राह मैं बेरहम हवा चली है..!
न खुली हैं फिर ये आँखें ख्वाबों में खो चली है,
खिलना था फूल गुलाब का ज़िन्दगी काँटों पे आ पली है..!
सुना था कर्म अच्छे का फल सदा भला है,
पर उल्टा है ये जमाना पानी से भी जला है..!
थी रात भी अँधियारी चाँद मेरा कहाँ चला है,
क़ुसूर मोहब्बत का ज़हन को कुछ यूँ ही खला है..!
बादल के पीछे छुपकर दुश्मन से जा मिला है,
मेरी चाहतों का सिला मुझे आंसुओं में घुला है..!
जब मोहब्बत ही निकली कुसूरवार फिर बेगुनाही का क्या सिला है..!
बंद द्वार जीवन का कुछ इस कदर मौत से जा मिला है..!
©SHIVA KANT(Shayar)
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