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पशु में, इंसान में, चेतना का फर्क है. जागृत न हुए इंसान का जीवन नर्क है। जगत मिथ्या, जगत ही माया है भोगों में रत इंसान इसे कहां समझ पाया है। कर रहें है हम सब वही काम पीढ़ी दर पीढ़ी। इसी चक्र में फंसे रहे तो कैसे मिलेगी स्वर्ग की सीढ़ी। ©Kamlesh Kandpal

#कविता #maya  पशु में, इंसान में, 
चेतना का फर्क है.
जागृत न हुए इंसान
 का जीवन नर्क है।

जगत मिथ्या,
जगत ही माया है 
भोगों में रत इंसान 
इसे कहां समझ पाया है।

कर रहें है हम सब 
वही काम पीढ़ी दर पीढ़ी।
इसी चक्र में फंसे रहे तो 
कैसे मिलेगी स्वर्ग की सीढ़ी।

©Kamlesh Kandpal

#maya

16 Love

White nothing perment aap jb tk kisi ke liye special ho jb tk kisi ke kam aa rhae ho sad hai but true' hai ©Shahin Parveen

#SAD  White nothing perment aap jb tk kisi ke liye special ho jb tk kisi ke kam aa rhae ho sad hai but true' hai

©Shahin Parveen

moh maya hai sab

12 Love

Maya k ho??#

90 View

White घर क्यों नेमत है? उन से पूछें जिन्हें ज़िंदगी के तवील सफ़र में कोई महफूज़ ठिकाना न मिला घर क्यों आबाद हैं? उन से पूछें जिन का किसी को इंतज़ार नहीं जिन्हें किसी का इंतज़ार नहीं घर क्यों ज़रूरत हैं ? उन से पूछें जिनकी आंख में कोई ख़्वाब नहीं। जिन के लब पे कोई सवाल नहीं घर क्यों जन्नत हैं? बस वहीं जानें जिन्हें इक छत और चार दीवारी का सुकूँ कभी मयस्सर न हुआ। ©Tarique Usmani

#Quotes #Free  White 
घर क्यों नेमत है?
उन से पूछें जिन्हें ज़िंदगी के तवील सफ़र में
कोई महफूज़ ठिकाना न मिला 

घर क्यों आबाद हैं?
उन से पूछें जिन का किसी को इंतज़ार नहीं 
जिन्हें किसी का इंतज़ार नहीं

घर क्यों ज़रूरत हैं ?
उन से पूछें जिनकी आंख में कोई ख़्वाब नहीं। 
जिन के लब पे कोई सवाल नहीं

घर क्यों जन्नत हैं?
बस वहीं जानें जिन्हें इक छत और
चार दीवारी का सुकूँ कभी मयस्सर न हुआ।

©Tarique Usmani

#Free

16 Love

MAYA😉

72 View

#Free  White लिखे थे नाम कागज पे, वो सब मैंने मिटा डाले,
की ये फेहरिस्त थी उनकी, जो बनते थे सगे वाले,

कभी मिल जाओ भर इनसे, और देखो सामने से तुम,
चमकते चेहरे रखते हैं, सुरख गहरे हैं दिल काले,

ये सारे वो ही रिश्ते हैं, ये सारे वो ही नाते हैं, 
जरा भर काम करने के, ये बदले कुछ तो चाहते हैं,

अगर चाहोगे कुछ ऐसा, इन्हें महफूज रखोगे,
ये अपने आप का ही तुम, कदम मनहूस रखोगे,

सलाह मानो अभी है वक्त, बना लो इनसे तुम दूरी,
बुरे जो वक्त ना थे साथ, थी इनकी क्या वो मजबूरी,

लिखे थे नाम कागज पे, वो सब मैंने मिटा डाले,
की ये फेहरिस्त थी उनकी, जो बनते थे सगे वाले,

©Pankaj Pahwa

#Free

1,899 View

पशु में, इंसान में, चेतना का फर्क है. जागृत न हुए इंसान का जीवन नर्क है। जगत मिथ्या, जगत ही माया है भोगों में रत इंसान इसे कहां समझ पाया है। कर रहें है हम सब वही काम पीढ़ी दर पीढ़ी। इसी चक्र में फंसे रहे तो कैसे मिलेगी स्वर्ग की सीढ़ी। ©Kamlesh Kandpal

#कविता #maya  पशु में, इंसान में, 
चेतना का फर्क है.
जागृत न हुए इंसान
 का जीवन नर्क है।

जगत मिथ्या,
जगत ही माया है 
भोगों में रत इंसान 
इसे कहां समझ पाया है।

कर रहें है हम सब 
वही काम पीढ़ी दर पीढ़ी।
इसी चक्र में फंसे रहे तो 
कैसे मिलेगी स्वर्ग की सीढ़ी।

©Kamlesh Kandpal

#maya

16 Love

White nothing perment aap jb tk kisi ke liye special ho jb tk kisi ke kam aa rhae ho sad hai but true' hai ©Shahin Parveen

#SAD  White nothing perment aap jb tk kisi ke liye special ho jb tk kisi ke kam aa rhae ho sad hai but true' hai

©Shahin Parveen

moh maya hai sab

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Maya k ho??#

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White घर क्यों नेमत है? उन से पूछें जिन्हें ज़िंदगी के तवील सफ़र में कोई महफूज़ ठिकाना न मिला घर क्यों आबाद हैं? उन से पूछें जिन का किसी को इंतज़ार नहीं जिन्हें किसी का इंतज़ार नहीं घर क्यों ज़रूरत हैं ? उन से पूछें जिनकी आंख में कोई ख़्वाब नहीं। जिन के लब पे कोई सवाल नहीं घर क्यों जन्नत हैं? बस वहीं जानें जिन्हें इक छत और चार दीवारी का सुकूँ कभी मयस्सर न हुआ। ©Tarique Usmani

#Quotes #Free  White 
घर क्यों नेमत है?
उन से पूछें जिन्हें ज़िंदगी के तवील सफ़र में
कोई महफूज़ ठिकाना न मिला 

घर क्यों आबाद हैं?
उन से पूछें जिन का किसी को इंतज़ार नहीं 
जिन्हें किसी का इंतज़ार नहीं

घर क्यों ज़रूरत हैं ?
उन से पूछें जिनकी आंख में कोई ख़्वाब नहीं। 
जिन के लब पे कोई सवाल नहीं

घर क्यों जन्नत हैं?
बस वहीं जानें जिन्हें इक छत और
चार दीवारी का सुकूँ कभी मयस्सर न हुआ।

©Tarique Usmani

#Free

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MAYA😉

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#Free  White लिखे थे नाम कागज पे, वो सब मैंने मिटा डाले,
की ये फेहरिस्त थी उनकी, जो बनते थे सगे वाले,

कभी मिल जाओ भर इनसे, और देखो सामने से तुम,
चमकते चेहरे रखते हैं, सुरख गहरे हैं दिल काले,

ये सारे वो ही रिश्ते हैं, ये सारे वो ही नाते हैं, 
जरा भर काम करने के, ये बदले कुछ तो चाहते हैं,

अगर चाहोगे कुछ ऐसा, इन्हें महफूज रखोगे,
ये अपने आप का ही तुम, कदम मनहूस रखोगे,

सलाह मानो अभी है वक्त, बना लो इनसे तुम दूरी,
बुरे जो वक्त ना थे साथ, थी इनकी क्या वो मजबूरी,

लिखे थे नाम कागज पे, वो सब मैंने मिटा डाले,
की ये फेहरिस्त थी उनकी, जो बनते थे सगे वाले,

©Pankaj Pahwa

#Free

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