चाहकर भी घर से निकलते नहीं अब..
खूब फिसले जमाने फिसलते नहीं अब..
वो बड़े ही सख्त मिजाज़ हुए रे कलम
तेरे लफ्जों के कमाल चलते नहीं अब..
पिघले होंगे पत्थर किसी के पिघलाये से
मेरे पिघलाये से वो पिघलते नहीं अब..
रातों के इंतजार में रहता हूँ तुम्हारे लिये
ये दुश्मन दिन जल्दी ढलते नहीं अब..
ख़ुद को बाँट तो लिया सर्द गर्म रातों सा
मौसम हैं कि सही से बदलते नहीं अब..
वादियाँ मशगूल हैं हुस्न की फिराक में
दिवाने दिल के अरमाँ मचलते नहीं अब..
एक हम हैं, कोशिशें खूब की भुलाने की
एक वो हैं, दिल से खिसकते नहीं अब..
©अज्ञात
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