तुम्हें तन्हा जलने की नहीं हैं ज़रूरत
मुसाफिर समझ कर ही मुझे साथ ले लो
चलो माना तुम एक मुकम्मल दरख़्त हो
मामूली समझ के मेरा हाथ ले लो
कभी एक क़तरा मलामत ना होगी
जो चाहो, ख़ुद्दारी का इम्तेहान ले लो
अगर,मैं नहीं हु क़ाबिल तुम्हारे,तो फ़िर हर्ज क्या है
इक अजनबी से जो कुछ बातें कह लो
तुम पर उदासी ज़रा ना हैं, जचती
ऐसा करो,मेरी सब मुस्कान ले लो
बहुत कीमती हो,कमसकम मुझे तुम
ये सांसे है जबतक मुझ में इक भी बाक़ी
खराशें तुम्हारी मैं सारी समेटु
तुम पर वफ़ाओ के कंबल लपेटू
नहीं तुम को कोई भी ग़म छू सके फ़िर
ये सारी बलाए, मैं अपने ही सर लू
तुम्हें हक़ है,तुम चाहे जो फैसला लो
बस इतना करो,ये उदासी हटा लो
हटा लो ये चुप्पी,खिल के हंसों तुम
खुशबुओं की तरह फ़िर,फ़िज़ा में बसों तुम
मैं तुम पर कभी कोई ख्वाइश न रखूं
बस इतना हो,तुम पर उदासी ना देखूं
तुम्हारी ख़ुशी मुझको तुम से भली हैं
ये पगली सी लड़की उमर भर जली हैं
मैं ले जाऊ हर ग़म तरफ से तुम्हारी
जो तुम खुश रहो तो पलट कर न देखूं
मुझे कोई वादा दो,हक़ तो नहीं हैं
चलो दोस्ती भी कोई कम नहीं है
नहीं मतलबी है,मेरी चाहते ये
तुम पर नहीं आए कोई बलाए
तुम्हारे ही हक में रही सब दुआएं
मैं भी नहीं समझी खुद को अभी तक
तो फिर दूसरों से उम्मीदें कहा तक
ये मेरी मोहब्बत तो फ़ानी सी ज़िद है
बिल आखिर के सांसों तलक तो ये ज़िद है
नहीं चाहिए तुम से कुछ भी तो मुझ को
ज़रूरी रहे तुम,जरूरी रहोगे
उदासी न ओढ़ो,वो मुझ तक ही छोड़ो
तुम पर है फबती मुस्काने सारी
तुम्हारी हसी पर तो दुनिया है वारी
तुम्हें भी नहीं हक है मुझ से ये छीनों
तुम्हारी हंसी,और खामोशी ये हमारी.....
©ashita pandey बेबाक़
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