मुहब्बत को नजर लग जाए ना ज़ालिम ज़माने का,
लगा रखी है कुंडी अपने दिल के कैदखाने का,
गुज़रना,घूरना,ताकना सदा ही एक खिड़की पर,
दिखा सकता है तुमको रास्ता भी जेल खाने का,
बड़े मायूस होगे टूटा दिल जब साथ लाओगे,
जन्म भर की तड़प बेचैनियां ज्युं पागल खाने का,
न दौड़ो तेज़ संकड़ा रास्ता है ये बहुत नाज़ुक,
निकलना भी बहुत मुश्किल है ख़तरा जान जाने का,
जो डूबे हैं निकलने का सलीका भी उन्हें आता,
ये पुल है दो दिलों के बीच केवल आने-जाने का,
है जिनका शौक़ हरदम खेलना ख़तरों से ही "गुंजन",
उन्हें मालूम है दरिया के भी उस पार जाने का,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
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