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पानगळ वाढत आहे चिंता आता पानगळीची... घुसमट भीती मनात असते वावटळीची! लागत नाही खरेच काही वृद्ध जिवाला... हवी जराशी विचारणाच बस कळकळीची! मरण्यासाठी जगण्याची तर कसरत सारी... प्रत्येकाची जिंदगीच ही धावपळीची! जीवनभर रंगाढंगाची प्यालो मदिरा... नशा तशी ना चवही कोठे जशी मळीची... व्हावे सारे मनासारखे वाटायाचे... उठाव मोर्चे चळवळ झाली बाब कळीची! जयराम धोंगडे ©Jairam Dhongade
Jairam Dhongade
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Ajita Bansal
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Mena Ravi
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Anita Raj
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Mathi
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बूंदों की ये भाषा, कभी समझ सके न कोई, हर दिल की धड़कन, कभी इनके संग है रोई.. बचपन की बारिशें, अब की बारिश से मिलें, चेहरे पर मुस्कान लिए, दोनों जहां संग खेलें... रंगीन छाते के नीचे, बारिश के मीठे गीत गाएं, कागज की नाव बनाकर, चलो पानी में बहाएं.. बस एक पल को ठहर, बूंदों के संग मुस्काए, बचपन की बारिशें, चलो फिर से जी जाएं....... -ख्याली_जोशी 🥀🥀 ©HUMANITY INSIDE
HUMANITY INSIDE
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