दूरियों में भी इश्क़ की बुनाई,
कुछ रेशे खुदा से जुड़ने लगे।
जो गिरने का डर रखते थे कभी,
अब फलक तक उड़ने लगे।।
ज़िंदगी का है फलसफा,
रुकते थमते, फिर भी चलने लगे।
जो थे कभी अजनबी,
वो अब अपना सा लगने लगे।।
जो थे कभी हमारी कमजोरी,
अब वो ताकत बनके उभरने लगे।।
जो सपने कभी दूर थे,
आँखों में सच होते दिखने लगे।।
नफ़रतों में भी प्यार की राह चली,
अब हर दिल एक दूजे से जुड़ने लगे।।
राहों के कांटे भी अब फूलों में बदलने लगे,
ज़िंदगी की किताब में नए पन्ने खुलने लगे।।
जो कभी डूबे थे गहरे अंधेरे में,
अब खुद को रौशन करने लगे।
©नवनीत ठाकुर
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