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#भक्ति #गोंडा #अवधि

मनमोहक लाइन कालिका परसाद कवि द्वारा#देहाती #अवधि#गोंडा

63 View

सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
 कंहा गया
वो सावन। 
पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला
अकेले ही झूला, झूला हमने
न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी। 
आज डर है, 
मेरी पैदाईश, मेरे पालन का, 
क्या झूलूं, कंहा झूलू
अब, कौन से सावन मे, 
अब, हर नज़र ललचाई, 
हर मन, हवस समाई, 
मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है
हवस मिटाने का मकान मानता है

©arvind bhanwra ambala. India

कंहा गया वो सावन

144 View

#सावन #लव #Videos #Savan
#सावन_का_महीना #भोलेनाथ #सावन  White गुज़रो किसी भी गली से,
 गुज़रो किसी भी गली से बस हरियाली और जल ही नज़र आता है ....
हर हर महादेव की है
गूंज हर जगह 
यह सावन का महीना है 
मेरे भोलेनाथ जी को बहुत भाता है

©Bindu Sharma
#कविता #सावन  White धूप किसी बंध्या-सी जिस पर सेंदुर बरक चढ़ाकर,
अपना दूध हीन आंचल फैलाकर रो रही है,
भारी मन से गाना पड़ता संध्या हो रही है।
क्षितिज थाल में नखत-दिया ले खड़ी कुरूपा मौन,

चांद सरीखा साजन उसको दे इस युग में कौन,
जबकि धरा उसकी विधवा माँ बूढ़ी और गरीबिन,
किसी पहाड़िन जैसी तम का बोझा ढो रही है,
भारी मन से गाना पड़ता संध्या हो रही है।

©आगाज़

#सावन @aditi the writer amit pandey

153 View

#भक्ति #गोंडा #अवधि

मनमोहक लाइन कालिका परसाद कवि द्वारा#देहाती #अवधि#गोंडा

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सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
 कंहा गया
वो सावन। 
पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला
अकेले ही झूला, झूला हमने
न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी। 
आज डर है, 
मेरी पैदाईश, मेरे पालन का, 
क्या झूलूं, कंहा झूलू
अब, कौन से सावन मे, 
अब, हर नज़र ललचाई, 
हर मन, हवस समाई, 
मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है
हवस मिटाने का मकान मानता है

©arvind bhanwra ambala. India

कंहा गया वो सावन

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#सावन #लव #Videos #Savan
#सावन_का_महीना #भोलेनाथ #सावन  White गुज़रो किसी भी गली से,
 गुज़रो किसी भी गली से बस हरियाली और जल ही नज़र आता है ....
हर हर महादेव की है
गूंज हर जगह 
यह सावन का महीना है 
मेरे भोलेनाथ जी को बहुत भाता है

©Bindu Sharma
#कविता #सावन  White धूप किसी बंध्या-सी जिस पर सेंदुर बरक चढ़ाकर,
अपना दूध हीन आंचल फैलाकर रो रही है,
भारी मन से गाना पड़ता संध्या हो रही है।
क्षितिज थाल में नखत-दिया ले खड़ी कुरूपा मौन,

चांद सरीखा साजन उसको दे इस युग में कौन,
जबकि धरा उसकी विधवा माँ बूढ़ी और गरीबिन,
किसी पहाड़िन जैसी तम का बोझा ढो रही है,
भारी मन से गाना पड़ता संध्या हो रही है।

©आगाज़

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