अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

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सब नश्वर है इस जीवन में , इक पीड़ा ही अविनाशी है। जब खुशियों ने नाता तोड़ा , आशाओं ने मुख को मोड़ा। जब हम बिल्कुल एकाकी हैं , तब आंसू ने साथ न छोड़ा।। है विश्वास नहीं खुशियों का , बस आंसू ही विश्वासी है। इक पीड़ा ही अविनाशी है ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#मोटिवेशनल  सब नश्वर है इस जीवन में , इक पीड़ा ही अविनाशी है।

जब खुशियों ने नाता तोड़ा , आशाओं ने मुख को मोड़ा।
जब हम बिल्कुल एकाकी हैं , तब आंसू ने साथ न छोड़ा।।

है विश्वास नहीं खुशियों का , बस आंसू ही विश्वासी है।
इक पीड़ा ही अविनाशी है

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

बस पीड़ा ही अविनाशी है ....

7 Love

विश्व को मोहमई महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा सारथी तो कभी प्रेमी बना, तो कभी गुरु-धर्म निभा गया कान्हा रूप विराट धरा तो, धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा देवल आशीष जी ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#भक्ति  विश्व को मोहमई महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा
सारथी तो कभी प्रेमी बना, तो कभी गुरु-धर्म निभा गया कान्हा
रूप विराट धरा तो, धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा
रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा
देवल आशीष जी

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

विश्व को मोहमई महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा सारथी तो कभी प्रेमी बना, तो कभी गुरु-धर्म निभा गया कान्हा रूप विराट धरा तो, धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा देवल आशीष जी ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

12 Love

सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

sunset nature काली काली छाँव है , गोरी गोरी धूप। दोनों ही प्यारी लगें , मौसम के अनुरूप।। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#शायरी #sunsetnature  sunset nature काली काली छाँव है , गोरी गोरी धूप।
दोनों ही प्यारी लगें , मौसम के अनुरूप।।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#sunsetnature

12 Love

मन बहुत दुखी है रोता है हैप्पी रमजान कहूँ कैसे। अतिथि को हमने देव कहा तुमको मेहमान कहूँ कैसे। तुम मानवता के द्रोही हो , तुम बहशी और दरिंदे हो, तुम दिखते हो इंसान मगर तुमको इंसान कहूँ कैसे। ©Ketan Tripathi

#न्यूज़ #fog  मन बहुत दुखी है रोता है हैप्पी रमजान कहूँ कैसे।
अतिथि को हमने देव कहा तुमको मेहमान कहूँ कैसे।
तुम मानवता के द्रोही हो , तुम बहशी और दरिंदे हो, 
तुम दिखते हो इंसान मगर तुमको इंसान कहूँ कैसे।

©Ketan Tripathi

#fog

6 Love

आँखें देख रही हैं जैसा इसको वैसा मत समझो। जो बोओगे वो काटोगे बिल्कुल ऐसा मत समझो। इस दुनिया के तौर तरीके रोज बदलते रहते हैं। दुनिया जैसे बदलो केतन अपने जैसा मत समझो। ©Ketan Tripathi

#दुनिया #कविता  आँखें देख रही हैं जैसा इसको वैसा मत समझो।
जो बोओगे वो काटोगे बिल्कुल ऐसा मत समझो।
इस दुनिया के तौर तरीके रोज बदलते रहते हैं।
दुनिया जैसे बदलो केतन अपने जैसा मत समझो।

©Ketan Tripathi
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