अच्छा हुआ के बस कहानी का किरदार रहे,
इश्क़ मलंगा शायर का अधूरा सा इज़हार रहे,
हासिल हुआ जो खोने पर, मिलने से छूठ जाता,
है अर्ज़ मेरी कहानी में ये सिलसिला हर बार रहे।
जुड़े हुए थे तुमसे जो; पूरे ख़्वाब अगर हो जाते वो,
एहसास नजाने कितनो से ये मुलाकातें न होती,
नज़र बिछाई राहों पर तुम मेरी ओर चलकर आते तो,
अल्फ़ाज़ों की मेरे हिस्से में फ़िर ये बरसातें न होती।
कब सुना है दिल दिमाग़ की; ये अक्सर ही लड़ते रहे,
बढ़ न पाये कभी तुमसे आगे; तुम में ही उलझे रहे,
हर बात हज़ारों सफ़र परे तुम तक आकर ठहर गई,
देखा जब भी शीशे में ख़ुद में भी तुम ही मिलते रहे।
चाहतें हर रोज़ तुम्हारी गलियों से गुज़रने की,
अपने ही घर की राहों का ठिकाना भुलाने लगी,
हावी हुए ऐ साकी तुम मुझपर जो इस तरह,
मेरी रूह भी मुझे ख़ुद से फ़िर बेगाना बुलाने लगी।
मग़र नींद तो खुलनी थी काली रात के ढलने पर,
अंधेर ख़्वाबों को सुलगना था आफ़ताब के जलने पर,
राब्ता तो उनसे महज़ ख़ुदको बिखेरने तक का था,
ये इल्म हुआ एक हरजाई का आकाश के मरने पर।
इश्क़ में राख़ होकर सुनो ये आशिक़ दिलदार कहे,
हर दीवाना इस जहान में ऐसी मोहब्बत सौ बार करे,
जब टूटकर टुकड़े मिलते हैं तो ऐसा कमाल लिखते हैं,
के टकरा जाएं जब भी किसीसे तो बिछड़ना हर बार रहे।
©Akash Kedia
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