यूॅं तो ये बात सच है कि ज़िंदगी में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं
जिन का कोई नाम नहीं होता, बस बेनाम होते हैं लेकिन फ़िर भी
दिल के क़रीब होते हैं और ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन जाते हैं।
लेकिन फ़िर ऐसे रिश्तों की एक हक़ीक़त ये भी है ना कि,
ऐसे बेनाम रिश्तों में फ़िर इक-दूसरे पर कोई हक़ ही नहीं होता।
इक-दूसरे की अच्छाइयाॅं-बुराइयाॅं बताने का,दिल खोल कर तारीफ़ करने का,
या फ़िर किसी की गलतियाॅ़ बताने का कोई हक नहीं होता,
तब-तक,जब-तक इक दूसरे को ऐसा कोई हक़ दिया न जाए।
और फ़िर ऐसे रिश्तों में अक्सर ख़ामोश ही रहना पड़ता है और
फ़िर दिल में ये सवाल आता है कि,
जहां हमारा कोई हक़ ही नहीं ऐसा रिश्ता निभाते रहने का क्या जवाज़ बनता है??
आप का उस इंसान के बिना दिल नहीं लगता क्या सिर्फ़ इसलिए ही
वो इंसान बिना किसी हक़ के आप से रिश्ता निभाता रहे??
जब आप का दिल करे आप उस से बात करें,जब चाहे उसे ignore करें,
गलतियाॅं आप करें और फ़िर भी वही आप के सामने झुकता रहे??
जब उसका दिल करे आप से बात करने का,आप कही और ही busy रहें,
उस से भी ज़्यादा कोई और ही आप के लिए ज़रूरी हो जाए
और फ़िर भी वही इंसान रिश्ते को बनाए रखने की कोशिश करें??
क्यूॅं और किस लिए ?? क्या आपने कभी ये सोचा कि आप के ऐसे
बरताव से उस इंसान के दिल को कितनी तकलीफ़ होती होगी ??
क्या सिर्फ़ उसी के लिए आप ज़रूरी हैं??
आप के लिए वो इंसान ज़रूरी नहीं?? और फ़िर भी अगर आप
अपनी मर्ज़ी और सहूलियत के हिसाब से ही रिश्ता निभाना चाहते हैं अगर
तो फ़िर उस इंसान को भी ये हक़ दीजिए कि वो भी अपने हिसाब से रिश्ता निभाए।
वर्ना बेहतर यही है कि आज़ाद कर दीजिए इस रिश्ते से उसे भी और
ख़ुद भी आज़ाद हो जाइए और ढूॅंढ लीजिए कोई ऐसा इंसान
जो आप की मर्ज़ी के हिसाब से आप से रिश्ता निभाए।
क्यूॅंकि हर कोई इतना भी मजबूर नहीं होता कि बार-बार
अपनी ख़ुद्दारी को मार कर आप के सामने हर बार झुक जाए ।
#bas yunhi ek khayaal .......
©Sh@kila Niy@z
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