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White जीने का हुनर अगर सीखना है, हमसे सीखो, अंधेरों में भी उम्मीद का चिराग जलाना सीखो। भेड़-बकरियों संग चलना हमें कब मंज़ूर, हमारी राहें अलग, हमारा सफर मशहूर। ©नवनीत ठाकुर

#मोटिवेशनल  White जीने का हुनर अगर सीखना है, हमसे सीखो,
अंधेरों में भी उम्मीद का चिराग जलाना सीखो।
भेड़-बकरियों संग चलना हमें कब मंज़ूर,
हमारी राहें अलग, हमारा सफर मशहूर।

©नवनीत ठाकुर

जीने का हुनर अगर सीखना है, हमसे सीखो, अंधेरों में भी उम्मीद का चिराग जलाना सीखो। भेड़-बकरियों संग चलना हमें कब मंज़ूर, हमारी राहें अलग, हमारा

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जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया , मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं , फिर किनारे बैठ गई हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं , कभी अश्रु , कभी मुस्कान मैं तुमको याद करती रही , मैं तुमको याद करती रही । ©Bhanu Priya

 जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया ,
मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं ,
फिर किनारे बैठ गई 
हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं ,
कभी अश्रु ,
कभी मुस्कान 
मैं तुमको याद करती रही ,
मैं तुमको याद करती रही ।

©Bhanu Priya

जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया , मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं , फिर किनारे बैठ गई हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं , कभी अश्रु , कभी

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White जीने का हुनर अगर सीखना है, हमसे सीखो, अंधेरों में भी उम्मीद का चिराग जलाना सीखो। भेड़-बकरियों संग चलना हमें कब मंज़ूर, हमारी राहें अलग, हमारा सफर मशहूर। ©नवनीत ठाकुर

#मोटिवेशनल  White जीने का हुनर अगर सीखना है, हमसे सीखो,
अंधेरों में भी उम्मीद का चिराग जलाना सीखो।
भेड़-बकरियों संग चलना हमें कब मंज़ूर,
हमारी राहें अलग, हमारा सफर मशहूर।

©नवनीत ठाकुर

जीने का हुनर अगर सीखना है, हमसे सीखो, अंधेरों में भी उम्मीद का चिराग जलाना सीखो। भेड़-बकरियों संग चलना हमें कब मंज़ूर, हमारी राहें अलग, हमारा

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जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया , मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं , फिर किनारे बैठ गई हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं , कभी अश्रु , कभी मुस्कान मैं तुमको याद करती रही , मैं तुमको याद करती रही । ©Bhanu Priya

 जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया ,
मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं ,
फिर किनारे बैठ गई 
हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं ,
कभी अश्रु ,
कभी मुस्कान 
मैं तुमको याद करती रही ,
मैं तुमको याद करती रही ।

©Bhanu Priya

जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया , मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं , फिर किनारे बैठ गई हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं , कभी अश्रु , कभी

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