तुमने खबर ही कहाँ ली मेरी
मेरे साथ रहते हुए भी बस मान लिया कि ठीक ही होगी,
तुमने पूछा ही कहाँ कुछ मुझसे
बस मेरी खामोशी को समझ लिया
की मेरी हाँ ही होगी,
मैं जरूरी ही कहाँ थी उतनी
जितना मैंने खुद को तुम्हारी जिंदगी में समझ लिया,
मैंने तो बस सोच लिया की
मैं तुम्हारे लिए कुछ खास होऊँगी
पर मैं स्वीकार ही कहाँ पायी
कुछ सच बस पाले रही वहम
की खुशी ऐसी ही होती होगी,
ये जो मानने और होने के बीच का फर्क होता है
न उसे स्वीकारने में एक उम्र साथ गुजार देते है
दो लोग और फिर पता ही नहीं चलता
की कब एक दूसरे की आदत बन गए..!
©Matangi Upadhyay( चिंका )
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