आँसू
खट्टी मीठी यादें हो
या पीड़ा हो तन मन की
मिली असीमित खुशियाँ या हो
खुशी छिनी जीवन की
चल पड़ते होकर स्वतंत्र कर
नेत्रों का परित्याग
बुझा सकें शायद वो उर की
विकट धधकती आग
उन्हे पता है वो नेत्रों के
लिए बहुत अनमोल
करते सदा प्रतिक्षा उनकी
छू लें उन्हें कपोल
पा करके स्नेहिल स्पर्श वो
कहें करो विश्राम
आँसू बोला रुक नहीं सकते
मुझे बहुत है काम
हृदय शांत हो जाए बेखुद
भले ही मैं मिट जाऊँ
आँसू कहता मैं मानव के
किसी काम तो आऊँ
©Sunil Kumar Maurya Bekhud
# आँसू