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सबकी अलग अलग है आदतें, अलग अलग है सोच। जो विखंडन करे परिवार का ,वही सोच है मोच।। ©विजय कुमार 'विजय'
Vijay Kumar Sharma
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आज का ज्ञान हक जरूरी है यहाँ, मिलना चाहिए अवश्य|जिम्मेदारी को भूल कर,हक मांगना भी तज्य ।। विजय कुमार
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उंचाई पर वो लोग ही पहुँचते है, जो प्रतिशोध के बजाय, परिवर्तन की सोच रखते है।
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चलता रहूँगा पथ पर, चलने में माहिर बन जाऊंगा !! या तो मंजिल मिल जाएगी, या अच्छा मुसाफ़िर बन जाऊंगा !! सिर्फ संतोष ढूँढिये,आवश्यकताऎ तो कभी समाप्त नही होंगी...”॥
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हमारा जीवन निर्माणाधीन इमारत जैसा है। बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा रहती है..!!
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क्यों दुखी होती कोई माँ , जीवन के अंतिम पड़ाव में ? क्योंकि जी नहीं सकती वह, कभी पारिवारिक बिखराव में,
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