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मोहब्बत के सिवा करता कुछ और नहीं यहां सब अपने हैं कोई भी गैर नहीं
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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset “यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ। हृदय का प्यारा टुकड़ा लो मैं तुमको अर्पण करता हूँ।। माँ की ममता का सागर यह मेरी आँखों का तारा हैं। मैं कैसे समझाऊ तुमको किस लाड़ प्यार से पाला हैं।। तुम द्वारे मेरे आये हो मैं क्या सेवा कर सकता हूँ। यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ।। मेरे हृदय के नील गगन का यह चंदा सा तारा था। अब तक जान ना पाया था इस पर अधिकार तुम्हारा था।। लो आज तुम्हें इस कुटिया की सुंदरता अर्पित करता हूँ। यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ।। 'उमा' से भूल बहुत होगी यह सरला हैं सुकुमारी हैं। इसके अपराध क्षमा करना निज माँ की दुलारी हैं।। यह बात समझ कर मैं मन ही मन रोया करता हूँ। यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ।। भाई से आज बहन बिछड़ी माँ से बिछड़ी माँ की ममता। बहनों से बिछुड़ी आज 'उमा' लो तुम हो इसके आज पिता।। मैं आज पिता कहलाने का अधिकार समर्पित करता हूँ। यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ।। था जिस दिन इसका जन्म हुआ ना गीत बजे ना शहनाई। पर आज परिणय के अवसर पर मेरे घर बजती शहनाई।। मम कुटिया की शोभा यह मैं बरबस अर्पण करता हूँ। यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ।। यह जायेगी सब रोयेंगे छलकेगा नयनों का सागर। भइया भाभी बहनें रोयें, रोयेंगी सब साखियॉ आकर।। लो आज तुम्हें इन हाथों से प्रिय 'उमा' को अर्पित करता हूँ। यह कन्या रूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूँ।।“ ©deep verma
deep verma
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