मैं माजी अंधेरों में हाथ मारता रहा,
उजाले चुपचाप खिल्ली उड़ाते रहे।
उन्हें आदत थी मर्द बदलने की,
हम ता-ज़िंदगी मोहब्बत निभाते रहे।
मैं तीमारदारी करता रहा जिनकी
वो मेरे जिस्मोे-जाँ से दूर जाते रहे।
लोग मर्द भी बदलते रहते हैं,
हम सूखे फूल डायरी में सजाते रहे।
रसूख़दारों ने की कोशिश हमें गिराने की,
और हम पसमांदों को उठाते रहे।
©Azad "कलम"
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