Nina

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नसीब हाथ बढ़ाऊं तो छू लूं तुझे, सांस लूं तो सांसों में लूं तुझे। आंख उठाऊं तो देखूं तुझे, आईना देखूं तो दिखे तू मुझे। सोते हुए सपनों में पाऊं तुझे, चलते कदमों तले पा जाऊं तुझे। हाथ बढ़ाऊं तो हक़ीक़त नहीं, अक्स पाऊं तुझे। सांसें लूं तो जीने की सांसें नहीं, खुशबू कोई पाऊं तुझे। आईना देखूं तो परछाईं नहीं, सोच का सामना पाऊं तुझे। राह चलूं तो कदमों तले ज़मीं नहीं, आसमां उड़ता पाऊं तुझे। तू दूर बहुत। तू पास के करीब है। तू झूठ बहुत। तू सच के करीब है।। तू मेरा नसीब है। ©Nina

#कविता  नसीब


हाथ बढ़ाऊं तो छू लूं तुझे,
सांस लूं तो सांसों में लूं तुझे।
आंख उठाऊं तो देखूं तुझे,
आईना देखूं तो दिखे तू मुझे।
सोते हुए सपनों में पाऊं तुझे,
चलते कदमों तले पा जाऊं तुझे।

हाथ बढ़ाऊं तो हक़ीक़त नहीं, अक्स पाऊं तुझे।
सांसें लूं तो जीने की सांसें नहीं,
खुशबू कोई पाऊं तुझे।
आईना देखूं तो परछाईं नहीं,
सोच का सामना पाऊं तुझे।
राह चलूं तो कदमों तले ज़मीं नहीं,
आसमां उड़ता पाऊं तुझे।

तू दूर बहुत।
तू पास के करीब है।
तू झूठ बहुत।
तू सच के करीब है।।

तू मेरा नसीब है।

©Nina

नसीब हाथ बढ़ाऊं तो छू लूं तुझे, सांस लूं तो सांसों में लूं तुझे। आंख उठाऊं तो देखूं तुझे, आईना देखूं तो दिखे तू मुझे। सोते हुए सपनों में पाऊं तुझे, चलते कदमों तले पा जाऊं तुझे। हाथ बढ़ाऊं तो हक़ीक़त नहीं, अक्स पाऊं तुझे। सांसें लूं तो जीने की सांसें नहीं, खुशबू कोई पाऊं तुझे। आईना देखूं तो परछाईं नहीं, सोच का सामना पाऊं तुझे। राह चलूं तो कदमों तले ज़मीं नहीं, आसमां उड़ता पाऊं तुझे। तू दूर बहुत। तू पास के करीब है। तू झूठ बहुत। तू सच के करीब है।। तू मेरा नसीब है। ©Nina

12 Love

मैं को मैने... आंसुओं से मैंने मुझको विदा है किया। सुखा कर उन्हे जेब में रुमाल सा सजा लिया। मुस्कुराते हुए मैंने मुझको देख तो लिया, मैं जान न पाया मैंने मुझे दिल था दिया। मैं रोया चमकती आंखों से, नूर बना लिया। मुस्कुराया बुझे अरमानों से, सुख बना लिया। जल उठी वो धरती, वहां मरुस्थल बना लिया। कांटों में फूल खिलाए, नदी से पानी बहा लिया। मैं जाता मुझसे दूर कि सुख से रहना हो लिया। मुझको दूर करना मुझसे ही उचित बना लिया। मैं जान न पाया कब मैंने खुद को शत्रु बना लिया। अजातशत्रु मैने अपना ही प्राण ले लिया।। मेरी दुनिया उजली करने मैने खुद को जला दिया!! ©Nina

#कविता  मैं को मैने...  

आंसुओं से मैंने मुझको विदा है किया।
सुखा कर उन्हे जेब में रुमाल सा सजा लिया।
मुस्कुराते हुए मैंने मुझको देख तो लिया,
मैं जान न पाया मैंने मुझे दिल था दिया।
मैं रोया चमकती आंखों से, नूर बना लिया।
मुस्कुराया बुझे अरमानों से, सुख बना लिया।
जल उठी वो धरती, वहां मरुस्थल बना लिया।
कांटों में फूल खिलाए, नदी से पानी बहा लिया।
मैं जाता मुझसे दूर कि सुख से रहना हो लिया।
मुझको दूर करना मुझसे ही उचित बना लिया।


मैं जान न पाया कब मैंने खुद को शत्रु बना लिया।
अजातशत्रु मैने अपना ही प्राण ले लिया।।


 मेरी दुनिया उजली करने मैने खुद को जला दिया!!

©Nina

आग

15 Love

सजीला चंद्रमा चंद इच्छाओं से सजा, चंद अपेक्षाओं से धुला, सजाया था स्वयं रूप। स्वयं का स्व तनिक बड़ा हो गया, इस युग के अनुरूप। हृदय कोमल ही खिला, मन निर्मल ही रहा, न बदला प्रेम का स्वरूप। निश्छल, निर्मल, सजल, सरल निर्बाध बहे सु रूप। इस प्रेम की छवि, उस रूप की रश्मि, कहां संजोती शुद्ध रूप? सूरज की गर्मी वायु की नर्मी, किसको देती अरूप? श्वेत है कण कण, रुपहला सा वर्ण, ये प्रेम का प्रतीक, बिल्कुल सटीक, बन गया चंद्रमा, आज सा न सजीला। आज सा न सजीला!! ©Nina

#कविता #Karwachauth  सजीला चंद्रमा

चंद इच्छाओं से सजा,
चंद अपेक्षाओं से धुला,
सजाया था स्वयं रूप।
स्वयं का स्व
तनिक बड़ा हो गया,
इस युग के अनुरूप।
हृदय कोमल ही खिला,
मन निर्मल ही रहा,
न बदला प्रेम का स्वरूप।
निश्छल, निर्मल,
 सजल, सरल
निर्बाध बहे सु रूप।

इस प्रेम की छवि,
उस रूप की रश्मि,
कहां संजोती शुद्ध रूप?
सूरज की गर्मी
वायु की नर्मी,
किसको देती अरूप?


श्वेत है कण कण,
रुपहला सा वर्ण,
ये प्रेम का प्रतीक,
बिल्कुल सटीक,
बन गया चंद्रमा,
आज सा न सजीला।
आज सा न सजीला!!

©Nina

#Karwachauth हिंदी कविता

17 Love

कीचड़ में कमल बारिश की बूंदें। बूंदों से बना समंदर। बारिश में बह गई मिट्टी घर के अंदर। मिट्टी बहते-रुकते कीचड़ बन गई। पर, इस समंदर से कीचड़ सब धुल गई। हो चला एहसास, अब जल्द होगा वास, अपने घर में। हां, अपने घर में! जहां न सिर्फ दीवारें, पर होंगे सुकून सारे। वो घर,आंगन,कमरा मेरा, होगा घर जीता जागता। इस कीचड़ से कमल खिलेंगे। दिल के सब तार जुड़ेंगे। सारंगी के सुर तरंग बजेंगे। बस, अब बहुत, बहुत जल्द हम अपने सपने, अपने घर मे ©Nina

#कविता #lotus  कीचड़ में कमल

बारिश की बूंदें।
बूंदों से बना समंदर।
बारिश में बह गई
मिट्टी घर के अंदर।

मिट्टी बहते-रुकते
कीचड़ बन गई।
पर, इस समंदर से
कीचड़ सब धुल गई।

हो चला एहसास,
अब जल्द होगा वास,
अपने घर में।
हां, अपने घर में!

जहां  न सिर्फ दीवारें,
पर होंगे सुकून सारे।
वो घर,आंगन,कमरा मेरा,
होगा घर जीता जागता।

इस कीचड़ से कमल खिलेंगे।
दिल के सब तार जुड़ेंगे।
सारंगी के सुर तरंग बजेंगे।
बस, अब बहुत, बहुत जल्द
हम अपने सपने, अपने घर मे

©Nina

#lotus हिंदी कविता

11 Love

#paani  Enlightenment


You have to eliminate the Sun to see the brighter stars.

©Nina

#paani

117 View

#मोटिवेशनल #goodnightimages  White खामोश रहकर सुनते रहना,
लगती संसार को विवशता।
चुप रहकर सब कुछ कहना
ज्ञान हो कि नहीं दुर्बलता।।

©Nina
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