Vijay Sonwane

Vijay Sonwane

  • Latest
  • Popular
  • Video

White मुझ सा ना कोई हैं मलंग, और ना तुझ सी हैं कोई सयानी। तुम मत्थम मधुर सी रगिनी, तेरी चितवन जैसे सुहासिनी,, तेज मानो भास्कर स्वरूप, चरित्र है गंगा का पानी।। सारे कथन मोहे झूठ लागे, बस मानू सच तेरी जबानी।। तुम दोहा, तुम शोरठा और तुम कविता, तुम हो विविधा, तुम से मेरी कहानी।। मैं काफिर तुम मंजिल हो, मै दरिया तुम साहिल हो। मैं नालायक नासमझ सा, तुम हर एक क्षेत्र मे काबिल हो।। मैं हर जगह से लुटा हुआ, तुम हर एक चाल से वाक़िफ़ हो।। तुम कालि घटा की रात जैसे, मैं उबासी भरा सवेरा हु। तुम्हारी अदा पर नही मर्यादा पर दिल हारा हु, तुम हो न हो मेरी मैं बस तुम्हारा हु।। ©Vijay Sonwane

#कविता #love_shayari  White 
मुझ सा ना कोई हैं मलंग, 
और ना तुझ सी हैं कोई सयानी।
तुम मत्थम मधुर सी रगिनी,
तेरी चितवन जैसे सुहासिनी,, 
तेज मानो भास्कर स्वरूप, 
चरित्र है गंगा का पानी।। 
सारे कथन मोहे झूठ लागे, 
बस मानू सच तेरी जबानी।। 
तुम दोहा, तुम शोरठा और  तुम कविता,
तुम हो विविधा, तुम से मेरी कहानी।। 
मैं काफिर तुम मंजिल हो, 
मै दरिया तुम साहिल हो। 
मैं नालायक नासमझ सा, 
तुम हर एक क्षेत्र मे काबिल हो।।
मैं हर जगह से लुटा हुआ, 
तुम हर एक चाल से वाक़िफ़ हो।। 
तुम कालि घटा की रात जैसे, 
मैं उबासी भरा सवेरा हु। 
तुम्हारी अदा पर नही मर्यादा पर दिल हारा हु, 
तुम हो न हो मेरी मैं बस तुम्हारा हु।।

©Vijay Sonwane

#love_shayari

15 Love

पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।। ©Vijay Sonwane

#लव  पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, 
जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. 
कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, 
कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. 
अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। 
होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, 
कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, 
कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो
की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , 
क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। 
कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, 
कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। 
फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।।

©Vijay Sonwane

18+

10 Love

#SAD  गिरना सिखा था बचपन में, 
अब तो नजरों से गिर रहा हूँ। 
अपने इश्क़ की राहो पर, 
खुद मुसाफिरों सा फिर रहा हु।
वफ़ा को छोड़कर इश्क़ में, 
गुनाह मैंने तमाम किया। 
खुद बेईमान बन चुका था , 
और इश्क़ को बदनाम किया। 
जखम ताजे होते तो भर जाते, 
घाव अब सड़ चुके है।
तुम कितना भी संभालो
दिल पत्थर हो गया 
जज्बात मर चुके है।
हालात मे सुधार हो सकता था
पर अब बिगड़ चुके है। 
हम वो बचे हि नही जो पहले थे, 
पहले तुमपे मरते थे अब पूरे मर चुके है।

©Vijay Sonwane

baat itni bigad gayi ki........

297 View

red

282 View

line

358 View

Hath mila lena

447 View

Trending Topic