कर्तव्य
मार्मिक प्रदर्शन देख रहा,
फिर भी निकले सड़कों पर,
समझ विलुप्त क्यों हो रही,जब मौत झूले सैकड़ों पर,
तिल तिल करते जूझ रहे एकल होकर उस बिस्तर पर।
शंखनाद विनाश का गूंज रहा,परमाणु से भी घातक है,
वो एक जीवाणु वैश्विक स्तर पर।
सोच क्षीण कर बैठा तू,
महसूस कर खौफनाक मंजर।
अर्थव्यवस्था भी डोल रही,तरक्की को निचोड़ रही,
अब भी लड़े तू धर्म के नाम पर।
हिम्मत बढ़ा उनकी तू,करते जो अपना सर्वोच्च न्योछावर,
नमन मेरा है उनको भी करे रात को दिन पहर।
हौंसला बढ़ा,मचे जब मौत का कोलाहल,
पारदर्शी प्रकृति हो रही,तू भी दूषित ह्रदय कर साफ जिगर।
हंसकर जीत इस युद्ध को,लहरे तिरंगा हर ऊंच शिखर,
घर बैठ जा रहे मानव तू, यह महामारी पहुंचे चरम शिखर।
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