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लफ्ज़ दर लफ्ज़ || सफ़ा दर सफ़ा
न जाने क्या तुम्हें बतला रही होगी ये दुनिया मेरी सब ख़ामियां गिनवा रही होगी ये दुनिया ©Rajneesh Kumar
Rajneesh Kumar
15 Love
अव्वल तू ये मान के हैं ये मसले ज़ुबान के हैं ©Rajneesh Kumar
10 Love
हमारे शहर की गलियां बहुत ही तंग हैं लेकिन हमारे शहर ने सातों समंदर आज़माए हैं ©Rajneesh Kumar
पत्थरों से रहम की दरकार मुझको खा गई और ये दरिया-दिली भी यार मुझको खा गई ©Rajneesh Kumar
11 Love
ये कहीं नासूर हो जाएं न सब ज़ख़्म ख़ूँ से धो रहे हैं आख़िरिश ©Rajneesh Kumar
16 Love
खु़द-शनासा हो रहे हैं आख़िरिश हम ख़ला में खो रहे हैं आख़िरिश khud-shanasa ho rahe hain aakhirish hum khala me kho rahe hain aakhirish ©Rajneesh Kumar
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