वो मेरे यार हैं लेकिन
मुझसे दूर बैठे हैं
आंखों में शिकायत है,
मग़र मग़रूर बैठे हैं।
शक–ए–मोहब्बत है,या
मोहब्बत का फ़साना है
मुलाक़ात जैसे भी हो,उन्हें
सब सच बताना है।
होठों पर ख़ामोशी है दिल से है रुसवा
चलो ....अब शिकायत ही सही
कुछ बात तो हो
ख़ामोश न रहें ज़ाहिर जज़्बात तो हो, भला
गिले शिकवों का हल निकले,तो क्या निकले!
हम उनसे बात करते है,
वो आंखे मूंद बैठे हैं।
ख़फा हैं वो आजकल मुझसे,
क्यों हैं कैसे पता चले?
लगाकर इश्क़ की बाज़ी, फरवरी के मौसम में
हम इस ओर बैठे हैं,
वो उस ओर बैठे हैं।
वो मेरे यार हैं लेकिन, मुझसे दूर...................!
©akshat raj
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