Narendra kumar

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प्रेम से स्तुति करे। प्रेम से करे प्रार्थना। हृदय घाट में बैठा हैं। विराट, सुक्ष्म दिव्य परमात्मा। ©Narendra kumar

#विचार  प्रेम से स्तुति करे।
प्रेम से करे प्रार्थना।
हृदय घाट में बैठा हैं।
विराट, सुक्ष्म दिव्य परमात्मा।

©Narendra kumar

प्रेम से स्तुति करे। प्रेम से करे प्रार्थना। हृदय घाट में बैठा हैं। विराट, सुक्ष्म दिव्य परमात्मा। ©Narendra kumar

21 Love

Unsplash समर्थ होते ही जीवन का अर्थ, अपने आप स्पष्ट होने लगता है। ©Narendra kumar

#विचार #Book  Unsplash समर्थ होते ही जीवन का अर्थ, 
अपने आप स्पष्ट होने लगता है।

©Narendra kumar

#Book

11 Love

Unsplash समर्थ होने पर सबसे पहले, समझ में आप उसी को आएगा, जो आप को पहले नही समझते थे। ©Narendra kumar

#विचार #Book  Unsplash 
समर्थ होने पर सबसे पहले,
समझ में आप उसी को आएगा,
जो आप को पहले नही समझते थे।

©Narendra kumar

#Book

14 Love

Unsplash भूल का मूल्य चुकाना पड़ेगा। कर्मो का शूल सुखाना पड़ेगा। हुआ है गलती तो, ज्ञात करना पड़ेगा। ठहर के स्वयं से, बात करना पड़ेगा। कैसे कर्मों में हेर-फेर हुआ। हुआ तो मालूम कैसे न हुआ। अब जो हुआ सो हुआ सुध लेना पड़ेगा। अब अपने ही विरुद्ध युद्ध लेना पड़ेगा। ©Narendra kumar

#कविता #Book  Unsplash भूल का मूल्य चुकाना पड़ेगा।
कर्मो का शूल सुखाना पड़ेगा। 
हुआ है गलती तो,
ज्ञात करना पड़ेगा।
ठहर के स्वयं से,
बात करना पड़ेगा।
कैसे कर्मों में हेर-फेर हुआ।
हुआ तो मालूम कैसे न हुआ।
अब जो हुआ सो हुआ सुध लेना पड़ेगा।
अब अपने ही विरुद्ध युद्ध लेना पड़ेगा।

©Narendra kumar

#Book

9 Love

Unsplash जीवन का सार समझने का प्रयास कीजिए, सबका व्यावहार अपने आप समझ में आ जायेगा। ©Narendra kumar

#विचार #Book  Unsplash जीवन का सार समझने का प्रयास कीजिए,
सबका व्यावहार अपने आप समझ में आ जायेगा।

©Narendra kumar

#Book

16 Love

Unsplash साधु स्वभाव सज्जन का, दुर्जन को कैसे भाये। मृत बीज से मिट्टी में, वृक्ष कैसे हो पाये। ©Narendra kumar

#विचार #Book  Unsplash साधु स्वभाव सज्जन का,
दुर्जन को कैसे भाये।
मृत बीज से मिट्टी में, 
वृक्ष कैसे हो पाये।

©Narendra kumar

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