shiv putra

shiv putra Lives in Dindori, Madhya Pradesh, India

https://youtu.be/2-7DQhttps://youtu.be/2-7DQ1pTeWU1pTeWU

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White शब्द वाक् अलंकारिक है केवल । अहम् भावों का होना चाहिए यूँ कहीं भी न खोला करें मन की किताबे कोरे कागज को पढ़ने का हुनर भी तो होना चाहिए ।। विचार पीयूष achrya Pt. saurabh dhar ©shiv putra

#कविता #kavita  White शब्द वाक् अलंकारिक  है केवल । 
अहम् भावों का होना चाहिए
यूँ कहीं भी न खोला करें मन की किताबे
कोरे कागज को पढ़ने का हुनर भी तो होना चाहिए ।। 

                  
       विचार पीयूष
                             achrya  Pt. saurabh  dhar

©shiv putra

#kavita

12 Love

अद्वितीय अमूल्य समय ,यूँ निकल गया इस जीवन का। सपनों की मीठी यादों में ,प्रवाह रुका इस जीवन का।। देखा मगर मै अपना न सका पढ़ा मगर न समझ सका । झूठे यादों से जुड़करके मोती खोया जीवन का।। प्रबाह रुका...... कवि सौरभ धर ©shiv putra

#कविता  अद्वितीय अमूल्य  समय ,यूँ निकल गया इस जीवन का।
सपनों की मीठी यादों में ,प्रवाह रुका इस जीवन का।। 

देखा मगर मै अपना न सका पढ़ा मगर न समझ सका  । 
झूठे यादों से जुड़करके मोती खोया जीवन का।। 


               प्रबाह रुका...... 

कवि  सौरभ धर

©shiv putra

अद्वितीय अमूल्य समय ,यूँ निकल गया इस जीवन का। सपनों की मीठी यादों में ,प्रवाह रुका इस जीवन का।। देखा मगर मै अपना न सका पढ़ा मगर न समझ सका । झूठे यादों से जुड़करके मोती खोया जीवन का।। प्रबाह रुका...... कवि सौरभ धर ©shiv putra

11 Love

#विचार  मनुष्य विचारों से निर्मित प्राणी है 
वो जैसा सोचता है वैसा बन  जाता है।

©shiv putra

मनुष्य विचारों से निर्मित प्राणी है वो जैसा सोचता है वैसा बन जाता है। ©shiv putra

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#कविता   सृजन के बीज हैं हम यूँ, निर्बीज हो नहीं सकते। 
अखंडित अंश सरीखे हैं यूँ, खंडित हो नहीं सकते
समंदर हैं सम्भावनाओं का
यूँ दरिया हो नहीं सकते।।

                               सौरभ धर बड़गैंयां

©shiv putra

सृजन के बीज हैं हम यूँ, निर्बीज हो नहीं सकते। अखंडित अंश सरीखे हैं यूँ, खंडित हो नहीं सकते समंदर हैं सम्भावनाओं का यूँ दरिया हो नहीं सकते।। सौरभ धर बड़गैंयां ©shiv putra

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#समाज #VandeMatram  जो राष्ट्र अपने सभ्यता और संस्कृतिकी रक्षा नहीं कर पाता। 
वह राष्ट्र अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाता।। 
इसलिए गर्व से कहो हम भारतीय हैं

©shiv putra

#VandeMatram

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#पौराणिककथा #jeevandhara  भौतिकता की दोड़ में जीवन यूँ ही खोते गये |
हम स्वयं ही स्वयं से दूर  होते गये
अमूल्य जीवन के मूल्य यूँ ही लगाते गये
मानों कांचों को बटोरा और मणियां खोते गये ||

क्या थी मंजिल और कहाँ चल पड़े हैं
पता स्वयं को नहीं पतन  मुहाने में खड़े हैं


जीवन की यूँ अविरल धारा सतत बहते जा रही है |
फिर भी क्यूं प्यासा  कंठ जलते जा रही है? ||

प्रलय और निर्माण तुम्ही हो |
निराकर साकार तुम्ही हो
चिन्मय सत्य आनंद अंश हो 
श्री राम प्रभु के अंश वंश हो ||

              कवि सौरभ धर

©shiv putra

#jeevandhara

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