जिस पंछी को न भय हो, उसके पंखों के कट जाने का,
सरहद पर भी हो बेखौफ जो धरा को चूमे,
हथियारों बारुदों के डर से भी जिसका निश्चय न डोले,
जो छोड़ क्षितिज को उड़ता जाए नभ के सीमा के भी पार,
वो अद्भुत खग कोई और नहीं, वो है मेरा निश्छल प्यार!
ये बंधन ऐसा जिसे कोई और बाध्य न बांध सके,
बंधकर भी आज़ाद जिए जो, ऐसा समर्पण चाहिए,
मजहबों की दीवारें जिसे कभी न बाँट सके,
कोई भी वृहत समस्या जिस धागे को न काट सके,
उसे देख समक्ष स्वयं बह जाए नयनों से अश्रु धार,
वो अश्रु नीर कुछ और नहीं, वो है मेरा निश्छल प्यार!
सपने नहीं मेरे की तुमसे ब्याह रचा लूँ,
तो चूनर ओढ़ कुमकुम सजाकर,
क्यों भाग्य पर इठलाऊँ?
ना कोई प्रतीक हो प्रेम का सत्यापन करके दिखाने का,
प्रेम केवल प्रेम हो, परस्पर अंतरमन में खो जाने का,
न चाह हो पाने की कुछ, न हो वासना की आग,
संकल्प हो ऐसा कठोर जिसमें सम्मिलित हो त्याग,
मोक्ष मिले या मिले पुनः पुनर्जन्म का भार,
किंतु मेरे संग रहेगा, वो है मेरा निश्चल प्यार!
तुम जीवन हो, तुम्हीं संसार हो,
जीवन का तुम ही, केवल एकमात्र उपहार हो,
चक्षु देखना चाहे निर्निमेष जिसे,
तुम वो ईश्वर का अवतार हो,
जो अंतहीन, अनंत अमिट है,
तुम्हीं तो वो निश्चल प्यार हो!
©रागिनी झा "मनु"
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