विजय कुमार सुतेड़ी

विजय कुमार सुतेड़ी

  • Latest
  • Popular
  • Video
#poetryunplugged #Bhakti

White द्वंद लिए सौ मन मंदिर में मुग्ध हंसी भावों को लेकर जो चलते निष्काम जगत में चैतन्य खोज ही लाते हैं। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। संशय और बंधन से उठकर काम, लोभ और मोह कुचलकर कलि के क्लिष्ट कालचक्र में भी जो धरम ध्वजा लहराते हैं। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। घोर दंश और प्रतिकारों में जो वैरागी बने सहज मन इंद्रजीत सी आभा लेकर चिरंजीव बन जाते है। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। लौकिक आडम्बर की जड़ता भाव शून्य में अर्पण करते जो श्लाघा की क्षुधा भुलाकर परहित मंगल गाते है। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। जीव तत्व का दर्शन शिव में जिन्हें मिला है अंतर्मन में जगत बोध और अनुभव पाकर जो तारतम्य तर जाते है। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं।। ©विजय कुमार सुतेड़ी

#Bhakti  White द्वंद लिए सौ मन मंदिर में
मुग्ध हंसी भावों को लेकर
जो चलते निष्काम जगत में
चैतन्य खोज ही लाते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते  हैं।

संशय  और बंधन से उठकर
काम, लोभ और मोह कुचलकर
कलि के क्लिष्ट कालचक्र में भी
जो धरम ध्वजा लहराते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते हैं।

घोर दंश और प्रतिकारों में
जो  वैरागी बने सहज मन
इंद्रजीत सी आभा लेकर
चिरंजीव बन जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।

लौकिक आडम्बर की जड़ता
भाव शून्य में अर्पण करते
जो श्लाघा की क्षुधा भुलाकर 
परहित मंगल  गाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।

जीव तत्व का दर्शन शिव में
जिन्हें मिला है अंतर्मन में
जगत बोध  और अनुभव पाकर
जो तारतम्य तर जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते हैं।।

©विजय कुमार सुतेड़ी

अभय होना

6 Love

"विजय कुमार सुतेड़ी" _______________ साहस की अगणित गाथाएं। रिपु नाश कर तर बाधाएं ।। जो छाए धाराधर बनकर । अविनाशी जो है गुमनाम ।। वसुधा उनको है प्रणाम ।। जो उज्जवल नवरत अंबर में। फूटे बन अंकुर बंजर में।। त्याग भाव निज डटे रहे जो। अपलक सोचा ना अंजाम ।। वसुधा उनको है प्रणाम। महि की महिमा के रखवाले । चेतन मन उमगे मतवाले ।। ओज वज्र सा लेकर टूटे। मचा दिया चहुं दिशा कोहराम।। वसुधा उनको है प्रणाम ।। रूधिर गाद में मिला चले जो । अचल शिला को हिला चले जो।। वधुऐं जिनकी क्षितिज निहारे। ढूंढ रही हर सुबह शाम।। वसुधा उनको है प्रणाम।।

#AWritersStory  "विजय कुमार सुतेड़ी"
 _______________

साहस की अगणित गाथाएं। 
 रिपु नाश कर तर बाधाएं ।। 
जो छाए धाराधर बनकर । 
अविनाशी जो है गुमनाम ।। 
वसुधा उनको है प्रणाम ।। 

जो उज्जवल नवरत अंबर में। 
फूटे बन अंकुर बंजर में।। 
 त्याग भाव निज डटे रहे जो। 
 अपलक सोचा ना अंजाम ।। 
वसुधा उनको है प्रणाम। 

 महि की महिमा के रखवाले । 
चेतन मन उमगे मतवाले ।। 
ओज वज्र सा लेकर टूटे। 
मचा दिया चहुं दिशा कोहराम।। 
 वसुधा उनको है प्रणाम ।। 

रूधिर गाद में मिला चले जो । 
अचल शिला को हिला चले जो।। 
वधुऐं  जिनकी क्षितिज निहारे। 
ढूंढ रही हर सुबह शाम।। 
वसुधा उनको है प्रणाम।।

"विजय कुमार सुतेड़ी" साहस की अगणित गाथाएं । रिपु नाश कर तर बाधाएं ।। जो छाए धाराधर बनकर । अविनाशी जो है गुमनाम ।। वसुधा उनको है प्रणाम ।। जो उज्जवल नवरत अंबर में। फूटे बन अंकुर बंजर में।। त्याग भाव निज डटे रहे जो। अपलक सोचा ना अंजाम ।। वसुधा उनको है प्रणाम।। महि की महिमा के रखवाले । चेतन मन उमगे मतवाले ।। ओज वज्र सा लेकर टूटे। मचा दिया चहुं दिशा कोहराम।। वसुधा उनको है प्रणाम।। रूधिर गाद में मिला चले जो। अचल शिला को हिला चले जो।। वधुऐं जिनकी क्षितिज निहारे। ढूंढ रही हर सुबह शाम।। वसुधा उनको है प्रणाम।।

#AWritersStory  "विजय कुमार सुतेड़ी"

साहस की अगणित गाथाएं । 
 रिपु नाश कर तर बाधाएं ।। 
जो छाए धाराधर बनकर । 
अविनाशी जो है गुमनाम ।। 
वसुधा उनको है प्रणाम ।। 

जो उज्जवल नवरत अंबर में। 
फूटे बन अंकुर बंजर में।। 
 त्याग भाव निज डटे रहे जो। 
 अपलक सोचा ना अंजाम ।। 
वसुधा उनको है प्रणाम।। 

 महि की महिमा के रखवाले । 
चेतन मन उमगे मतवाले ।। 
ओज वज्र सा लेकर टूटे।
मचा दिया चहुं दिशा कोहराम।। 
 वसुधा उनको है प्रणाम।। 

रूधिर गाद में मिला चले जो। 
अचल शिला को हिला चले जो।। 
वधुऐं  जिनकी क्षितिज निहारे। 
ढूंढ रही हर सुबह शाम।। 
वसुधा उनको है प्रणाम।।

"सुरभि" - विजय कुमार सुतेड़ी सुरभि मन में बस गई|| पाश से मुक्त कर , स्नेह सिंधु युक्त कर | चित्त खंड खंड कर, मोह तंतु अखंड कर | छत्र सी परछाई बन, नीर सी गहराई बन | लक्ष्य के प्रयास सी, डूबते की आस सी | टूटती कड़ी कोई, उंगलियों में फंस गई | सुरभि मन में बस गई || ज्वार में उठी लहर, झंझावत मन गया सहर | अधर कांपते वीणा तार, इक मन और सौ विचार | द्वीप सी उदधि के बीच, ध्रुव सी किसी हृदय को खींच | मोती जो झांकती सीप से, फागुन की बयार सी गुजरी करीब से | लरज कर मौज की जंजीर, फिर बदन में कस गई | सुरभि मन में बस गई ||

#HopeMessage  "सुरभि" - विजय कुमार सुतेड़ी

सुरभि मन में बस गई||
 पाश से मुक्त कर ,
स्नेह सिंधु युक्त कर |
 चित्त खंड खंड कर, 
 मोह तंतु अखंड कर |
छत्र सी परछाई बन, 
नीर सी गहराई बन |
लक्ष्य के प्रयास सी, 
 डूबते की आस सी |
टूटती कड़ी कोई, 
उंगलियों में फंस गई |
सुरभि मन में बस गई ||

 ज्वार में उठी लहर, 
 झंझावत मन गया सहर |
अधर कांपते वीणा तार, 
 इक मन और सौ विचार |
 द्वीप सी उदधि के बीच, 
 ध्रुव सी किसी हृदय को खींच |
 मोती जो झांकती सीप से, 
 फागुन की बयार सी गुजरी करीब से |
 लरज कर मौज की जंजीर, 
 फिर बदन में कस गई |
सुरभि मन में बस गई ||

___"सुरभि"----विजय कुमार सुतेड़ी___ सुरभि मन में बस गई|| पाश से मुक्त कर , स्नेह सिंधु युक्त कर | चित्त खंड खंड कर, मोह तंतु अखंड कर | छत्र सी परछाई बन, नीर सी गहराई बन | लक्ष्य के प्रयास सी, डूबते की आस सी | टूटती कड़ी कोई, उंगलियों में फंस गई | सुरभि मन में बस गई || ज्वार में उठी लहर, झंझावत मन गया सहर | अधर कांपते वीणा तार, इक मन और सौ विचार | द्वीप सी उदधि के बीच, ध्रुव सी किसी हृदय को खींच | मोती जो झांकती सीप से, फागुन की बयार सी गुजरी करीब से | लरज कर मौज की जंजीर, फिर बदन में कस गई | सुरभि मन में बस गई ||

#HopeMessage  ___"सुरभि"----विजय कुमार सुतेड़ी___

सुरभि मन में बस गई||
 पाश से मुक्त कर ,
स्नेह सिंधु युक्त कर |
 चित्त खंड खंड कर, 
 मोह तंतु अखंड कर |
छत्र सी परछाई बन, 
नीर सी गहराई बन |
लक्ष्य के प्रयास सी, 
 डूबते की आस सी |
टूटती कड़ी कोई, 
उंगलियों में फंस गई |
सुरभि मन में बस गई ||

 ज्वार में उठी लहर, 
 झंझावत मन गया सहर |
अधर कांपते वीणा तार, 
 इक मन और सौ विचार |
 द्वीप सी उदधि के बीच, 
 ध्रुव सी किसी हृदय को खींच |
 मोती जो झांकती सीप से, 
 फागुन की बयार सी गुजरी करीब से |
 लरज कर मौज की जंजीर, 
 फिर बदन में कस गई |
सुरभि मन में बस गई ||
Trending Topic