#OpenPoetry उसकी यादो से निकलना सिख गया हूं मैं अपनी माँ के बताए होवे रास्ते पे चलना सिख गया हूं मैं
तू मिलने ना भी आये तो अब गम नही खुद से नाराज़ हो कर खुद को मनाना सिख गया हूं मैं
कभी फुरसत मिले तो याद कर लेना मुझे वरना मैं तो तुम्हारी पुरानी व्हाट्सएप्प पर की गई बातों से दिल बहलाना भी सिख गया हूं मैं
दर्द तो बहुत हुआ मुझे तुम्हारे दूर जाने के बाद लेकिन अब मैं दर्द में मुस्कुराना भी सीख गया हूं मैं
जहाँ भी रहो खुश रहो हर नमाज़ के बाद ये दुआ मांगना भी सिख गया हूं मैं
अब बाते नही होती हमारी तो क्या हुआ आईने के सामने बैठ कर खुद से बाते करना तो अब सिख गया हूं मैं
मैं रोता हु रातो में लेकिन दिन में अपने आंसू छुपाना भी सिख गया हूं मैं
महफिले पसन्द थी मुझे पर अब भीड़ में भी तन्हा रहना सिख गया हूं मैं
जानता था नही ज़िंदा रहे पाऊँगा तुझे भूलने के बाद
ज़िंदा हो कर भी अब मरना सिख गया हूं
शायद मेरा दिल अभी भी तुम्हारे पास है चलो अब वापस मत करो मैं बिना दिल के भी जिंदा रहना सिख गया हूं मैं
अब तुम ना भी आओ वापस मेरी ज़िंदगी मे तेरी यादों के साथ छत्त पर टहलना तो सिख गया हूं मैं
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