White मनुष्य दूसरे के हृदय को विश्रांति कब दे सकता है? जब वह स्वयं स्थिर मति हो, प्रसन्न हो या शांत हो। जब वह स्वयं अशांत हो, उसका हृदय दग्ध हो, अचानक आई पीड़ा से क्षुब्ध हो, ईश्वर के न्याय से विश्वास डोल रहा हो और मन आखिरी खिन्न हो, तब वह कैसे किसी को सांत्वना दे,कैसे किसी को धीरज दे, कैसे कहे कि हर किसी की एक दिन यही गति होनी है, जो भी आया है उसे जाना है, मृत्यु की कोई नियत तिथि नहीं है, ना यह कालानुक्रम देखता है ना यह बड़े छोटे का भेद करता है। और मृत्यु हमेशा अचानक ही आती है,यह बताती नहीं की फलाने दिन, फलाना आदमी देवलोक गामी होगा। फिर भी मनुष्य निरंतर भविष्य का अलग अलग योजना बनाता है और जब जब प्रियजन की मृत्यु होती है , शमशान घाट में उसे क्षणिक ही सही वैराग्य उत्पन्न होता है ,यह तमाम दुनियावी प्रपंच उसे छलावा लगता है, जो की पानी के बुलबुले के समान हमेशा फूटने को तत्पर रहता है।
©Niwas
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