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जब उदास होती हूं कोरे कागज़ को पढ़ लेती हूं कुछ कहती नहीं किसी से चुपके से रो लेती हूं❤️
https://www.youtube.com/@Shreya_shamit
कितनी बेफिक्र सी होती है बेटियां जब रहती है पिता के घर में सुने आंगन की किलकारी बन दिन भर चहचहाती है। हर गम से बेफ्रिक हो कर रात माँ के आंचल सो जाती है कितनी बेफिक्र होती है बेटियां जब पिता के घर रहती है बचपन से यौवन तक ख़ूब लाड़ प्यार पाती है एक दिन किसी अजनबी या जानपहचान वाले से ब्याह दी जाती है तब आता है एक मोड़ जीवन मे सारी बेफ़िक्रीय वो खो देती है कितनी बेफ्रिक ...... अनजाने आँगन में खुल कर जी भी नही पाती है हँसना तो छोड़ो रो भी नहीं पाती है रोज़ ज़िम्मेदारीयो का एक नया बोझ पा जाती है एक दिन पिता की बुलबुल सारी बेफ़िक्रीया खो देती है कितनी बेफिक्र ..... ©Shreya Tripathi
Shreya Tripathi
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लफ्जों की खामोशी को तबस्सुम की समां दीजिएं जो कभी कहा ही नहीं आज वही वयां कीजिए किस कदर मुहब्बत है आपसे अपनी खामोशी से ही समझा दीजिए। ©Shreya Tripathi
इश्क़ है इश्क़ चाहते है इश्क़ से इश्क़ चाहते है कुछ और नहीं चाहिए तुमसे खुद के लिए सिर्फ़ वक़्त चाहते है.. ©Shreya Tripathi
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