कितनी बेफिक्र सी होती है बेटियां जब रहती है पिता के घर में
सुने आंगन की किलकारी बन दिन भर चहचहाती है।
हर गम से बेफ्रिक हो कर रात माँ के आंचल सो जाती है
कितनी बेफिक्र होती है बेटियां जब पिता के घर रहती है
बचपन से यौवन तक ख़ूब लाड़ प्यार पाती है
एक दिन किसी अजनबी या जानपहचान वाले से ब्याह दी जाती है
तब आता है एक मोड़ जीवन मे सारी बेफ़िक्रीय वो खो देती है
कितनी बेफ्रिक ......
अनजाने आँगन में खुल कर जी भी नही पाती है हँसना
तो छोड़ो
रो भी नहीं पाती है
रोज़ ज़िम्मेदारीयो का एक नया
बोझ पा जाती है
एक दिन पिता की बुलबुल सारी बेफ़िक्रीया खो देती है
कितनी बेफिक्र .....
©Shreya Tripathi
#Woman