K R Prbodh

K R Prbodh Lives in Delhi, Delhi, India

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गुजर जाऊं वो झोका नही हवा का ठहर जाऊं वो मौका नहीं जगह का तड़पती हो तो तड़पती रहो जिंदगी अभी आया नही वक्त तेरी दवा का सजा तो दिया है आशियां फूलों से खूबसूरत आज दस्तूर नही है वफा करने का जीतना है तो फिर डरना क्यों मेरे भाई हिसाब क्या करना नुकसान का और नफा का न जाने क्या क्या कहां कहां हलचल सी होती है संभल के रहना ये इश्के मर्ज है पहली दफा का Dr KR Prbodh ©K R Prbodh

 गुजर जाऊं वो झोका नही हवा का
ठहर जाऊं वो मौका नहीं जगह का

तड़पती हो तो तड़पती रहो जिंदगी
अभी आया नही वक्त तेरी दवा का

सजा तो दिया है आशियां फूलों से खूबसूरत
आज दस्तूर नही है वफा करने का

जीतना है तो फिर डरना क्यों मेरे भाई
हिसाब क्या करना नुकसान का और नफा का

न जाने क्या क्या कहां कहां हलचल सी होती है
संभल के रहना ये इश्के मर्ज है पहली दफा का
Dr KR Prbodh

©K R Prbodh

गुजर जाऊं वो झोका नही हवा का ठहर जाऊं वो मौका नहीं जगह का तड़पती हो तो तड़पती रहो जिंदगी अभी आया नही वक्त तेरी दवा का सजा तो दिया है आशियां फूलों से खूबसूरत आज दस्तूर नही है वफा करने का जीतना है तो फिर डरना क्यों मेरे भाई हिसाब क्या करना नुकसान का और नफा का न जाने क्या क्या कहां कहां हलचल सी होती है संभल के रहना ये इश्के मर्ज है पहली दफा का Dr KR Prbodh ©K R Prbodh

8 Love

इश्क ही नही फिर धड़कनों में धड़कना कैसा पुकारने की कोई सूरत नहीं फिर जिस्म फड़कना कैसा रफ्ता रफ्ता उतरती रही पपड़ी दीवारों से ऐसी दीवार के साए में सिमटना कैसा छत पे रहती है जीने से उतरती नही फिर ऐसी धूप के जिस्म से लिपटना कैसा प्यार तो करती है हवा जब छू के गुजर जाती है फिर ऐसी बेमानी बातों से निपटना कैसा Dr KR Prbodh ©K R Prbodh

 इश्क ही नही फिर धड़कनों में धड़कना कैसा
पुकारने की कोई सूरत नहीं फिर जिस्म फड़कना कैसा
रफ्ता रफ्ता उतरती रही पपड़ी दीवारों से
ऐसी दीवार के साए में सिमटना कैसा
छत पे रहती है जीने से उतरती नही
फिर ऐसी धूप के जिस्म से लिपटना कैसा
प्यार तो  करती है हवा जब छू के गुजर जाती है
फिर ऐसी बेमानी बातों से निपटना कैसा
Dr KR Prbodh

©K R Prbodh

बेमानी मोहब्बत

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नाम तेरा लिख लिख के मिटाया था जब खत पड़ोसी के घर आया था बह गए थे साजो सामान घर के निगाहों से अश्कों का दरिया बहाया था दिखे थे टूटते सितारे उस रात मैने आसमान को कुछ न सुनाया था मौसम है सूना सुना हर चौराहे का तपती दोपहरी में परिंदा भी न देख पाया था चुन चुन के सजाई थी शबनम रात ने जाने क्यूं आफताब कहर बन के छाया था Dr KR Prbodh ©K R Prbodh

#reading  नाम तेरा लिख लिख के मिटाया था
जब खत पड़ोसी के घर आया था

बह  गए  थे  साजो सामान  घर  के
निगाहों से अश्कों का दरिया बहाया था

दिखे थे टूटते सितारे उस रात
मैने आसमान को कुछ न सुनाया था

मौसम है सूना सुना हर चौराहे का
तपती दोपहरी में परिंदा भी न देख पाया था

चुन चुन के सजाई थी शबनम रात ने
जाने क्यूं आफताब कहर बन के छाया था

Dr KR Prbodh

©K R Prbodh

#reading

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शेरो शायरी आपकी

शेरो शायरी आपकी

Saturday, 17 April | 04:30 pm

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आज शाम मैं कह न सकूं तो तुम बोल देना थोड़ी सी मदिरा कानों में घोल देना न बांधो मजबूती से दुपट्टा अपना हवा इश्क की है थोड़ा सा झोल देना तपती है रूह जेठ की दोपहरी में एक करम जुल्फों को खोल देना क्या कहूं क्या न कहूं मोहब्बत में बताना इशारों में बस लफ्ज तोल देना Dr KR Prbodh ©K R Prbodh

#PoetInYou  आज शाम  मैं कह न सकूं तो तुम बोल देना
थोड़ी सी मदिरा कानों में घोल देना

न बांधो मजबूती से दुपट्टा अपना
हवा इश्क की है थोड़ा सा झोल देना

तपती है रूह जेठ की दोपहरी में
एक करम जुल्फों को खोल देना

क्या कहूं क्या न कहूं मोहब्बत में
बताना इशारों में बस लफ्ज तोल देना

Dr KR Prbodh

©K R Prbodh

#PoetInYou

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उनकी याद DR KR Prbodh ©K R Prbodh

 उनकी याद  DR KR Prbodh

©K R Prbodh

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