महज़ खाली दवातो को भरा अब तक
खुद ही के बनाए अहातों में चला अब तक
चल दिया जो रास्ता साफ दिखा उसी पर
समंदर को दिया होगा पता अब तक
ढह गया महल ख्यालों का यूंही
मुश्किल जो आई खुद को छला अब तक
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शरारती आंखों में ख्वाब लाज़िम हो कैसे
चुन लिए खेत बहुत आब लाज़िम हो कैसे
इक कौने में बैठी दियासलाई थी
इक-इक तीली को ताब लाज़िम हो कैसे
मुश्किले-हयात तो नहीं अब तक
फिर भी कोई किताब लाज़िम हो कैसे
शरारती आंखों में ख्वाब लाज़िम हो कैसे
चुन लिए खेत बहुत आब लाज़िम हो कैसे
इक कौने में बैठी दियासलाई थी
इक-इक तीली को ताब लाज़िम हो कैसे
मुश्किले-हयात तो नहीं अब तक
फिर भी कोई किताब लाज़िम हो कैसे
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