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तितली बनकर उड़ते गगन में झूम झूम कर नाचूंगी। भौंरा बनकर फूलों का रस पीने को आऊंगी। आसमान के ऊपर से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाऊंगी। मेरे जितने साथी हैं पास उन्हें बुलाऊंगी। ताज़ा ताज़ा फूलों की रस मैं पिलाऊंगी। मेरे बगीया की खूब शैर कराऊंगी। चुन चुन कर फूलों की रस मैं निकालूंगी। घर आंगन गलियों को खूशबू से महकाऊंगी।पल में तितली पल में भंवरा बन कर मैं मंडराऊंगी। जो भी मेरे पास आए गीत नया सुनाऊंगी। तितली हूं तो क्या हुआ ताज महल बनाऊंगी।इक बार तुम आ जाओ उडना तुम्हें सिखाऊंगी। अपने पीठ पर बिठाकर तुमको खूब मज़ा दिलाऊंगी। तितली बनकर उड़ते गगन में .... ©Karamsingh Bhuihar
Karamsingh Bhuihar
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मन मेरो पंक्षी बन जावे।पल में कहां से कहां पहुंच आवे।देखन लागे नयन मोरी। कभी आस पूरी ना होय।करे बिचार मन भावन लागे। सब कुछ उल्टा होय। कलियुग के दुनिया में भला कौन अपना होय। सबको मागन आन पड़ी है।जग लोभी होय।सब कहत यह मेरो मेरो।ना किसी का होय। उड़ता पंछी मन मेरो तड़प तड़प के रोय।उठत जग हांसन लागे।नयन सबको भाए। पैसा ही सब कुछ होय तो नींद कहां से आए। जो जैसा कर्म करेगा फल उसको मिल जाए। ©Karamsingh Bhuihar
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