तितली बनकर उड़ते गगन में झूम झूम कर नाचूंगी। भौंरा बनकर फूलों का रस पीने को आऊंगी। आसमान के ऊपर से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाऊंगी। मेरे जितने साथी हैं पास उन्हें बुलाऊंगी। ताज़ा ताज़ा फूलों की रस मैं पिलाऊंगी। मेरे बगीया की खूब शैर कराऊंगी। चुन चुन कर फूलों की रस मैं निकालूंगी। घर आंगन गलियों को खूशबू से महकाऊंगी।पल में तितली पल में भंवरा बन कर मैं मंडराऊंगी। जो भी मेरे पास आए गीत नया सुनाऊंगी। तितली हूं तो क्या हुआ ताज महल बनाऊंगी।इक बार तुम आ जाओ उडना तुम्हें सिखाऊंगी। अपने पीठ पर बिठाकर तुमको खूब मज़ा दिलाऊंगी। तितली बनकर उड़ते गगन में ....
©Karamsingh Bhuihar
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