जतानें को....बतानें को...
सुनानें को....बनानें को...
यहाँ बातें ही बातें है.....
इन बातों का क्या कीजे...
भटकनें को....सुलझनें को...
समझनें को...उलझनें को...
बचानें को...लुटानें को..
ये गोशा एक दिल तो है...
बतायें दिल का क्या कीजे..
आपके विचार, भावनायें, तर्क ,हौंसले...इतने दृढ़ नही है कि आप एक बार में दुनिया के पार हो जायेगें...इनको बार-२ टूटना होगा...जुड़ना होगा...
.......और आप हर बार कुछ नया बन के उभरेगें...
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