जतानें को....बतानें को... सुनानें को....बनानें | हिंदी कविता
"जतानें को....बतानें को...
सुनानें को....बनानें को...
यहाँ बातें ही बातें है.....
इन बातों का क्या कीजे...
भटकनें को....सुलझनें को...
समझनें को...उलझनें को...
बचानें को...लुटानें को..
ये गोशा एक दिल तो है...
बतायें दिल का क्या कीजे.."
जतानें को....बतानें को...
सुनानें को....बनानें को...
यहाँ बातें ही बातें है.....
इन बातों का क्या कीजे...
भटकनें को....सुलझनें को...
समझनें को...उलझनें को...
बचानें को...लुटानें को..
ये गोशा एक दिल तो है...
बतायें दिल का क्या कीजे..