चाहती हूं तुम्हारी ओर बड़ना
पर बड कर आगे
फिर रुक जाती हूं
सोचती हूं कहीं
फ़िर से कोई गलती ना कर दू
किसकी सुनूं समझ नहीं आता
दिमाग़ कहता है
सभल कर क़दम उठाना
दिल कहता है कि
बस तेरी ओर बढ़ती जाऊ.....!!!!
एक बचपन का ज़माना था
जिसमें खुशियों का खजाना था
चाहत चांद को पाने की थी
पर दिल तितली का दीवाना था
खबर ना थी कुछ सुबह की
ना श्याम का ठिकाना था
थक कर आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था
बारिश में कागज़ कि नाव थी
हर मौसम सुहाना था
रोने की वजें ना थी
ना हसने का बहाना था
क्यों हो गए हम इतने बड़े
इससे अच्छा तो बचपन का जमाना था
वो बचपन का जमाना भी
सुहाना था....!!!
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