तुम थक कर आओ जहां... मैं वो घर बनना चाहती हूँ,
जिस तरह तुम सब को सुनते हो... मैं तुम्हारा गम सुनना चाहती हूँ।
छूपाते फिरते हो जिसे... मैं वो जज्बात बनना चाहती हूँ।
दिन भर जो तुम ख़्वाब बुनते हो... उन ख़्वाबों में खोना चहती हूँ, तुम्हारे खुशियों की ही सिर्फ़ नहीं... गमो की हिस्सेदार होना चाहती हूँ।
तुम चैन से रो सको जिस जगह... मैं वो आराम बनना चाहती हूँ, जो तुम से शुरू हो, तुम पर ही खत्म हो... मैं वो विकल्प चुनना चहती हूँ।
मैं तुम्हरी थी, तुम्हरी हूँ... सदा के लिए तुम्हारी ही रहना चहती हूँ ।।
©the secret diary (prerna)
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