Red sands and spectacular sandstone rock formations गुफ़्तगू होती रही हम दोनों के दरमियाँ,
वो अपनी कहता गया और मैं सुनाता रहा,
ना रही फ़िक्र उसको ज़माने की कभी
मैं तो ज़माने को हरदम आजमाता रहा,
दिखती हैं मजबूरियाँ मेरी, उसकी आँखों में
फ़िर भी ज़माने की ख़ातिर नक़ाब लगाता रहा,
ख़ूब होती है बातें बेज़ार रो लेता हूँ निश्छल
उसे अपनी नाकामियों से अवगत कराता रहा ,
जानता हूँ मुझसे ज़्यादा फ़िक्र उसको है मेरी
सामने खड़े होकर मुझे वो ढाढस बंधाता रहा ,
कोई आ नहीं सकता कभी हम दोनों के दरमियाँ
उससे मिलने के लिए सामने आईना लगाता रहा l
©"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)
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